दो अप्रैल को जन्म सब कुछ के लिए प्रार्थना
जिस दिन को हम दो अप्रैल कहते हैं
यह तमाम दिनों में से इस क़दर बिना चुने
दो अप्रैल है कि हर दिन
दो अप्रैल होने को स्वतंत्र है और हम
इतना कम जानते हैं
रहस्यों भरे संसार को
कि अचरज नहीं अगर पूरा काल एक दिन है
जिसे तारीख़ दो अप्रैल कहते हैं
बाक़ी तीन सौ चौंसठ तारीख़ों की प्रार्थना
इसी प्रार्थना में
ऐसे समाहित है कि जैसे काल समूचा
एक पल में सन्निहित
हम फैलते हुए आयतन में घनत्व की चेतना
हम अनंत की लघुता में शून्य
हम निःशब्द संसार में निस्सीम शब्दों की प्रार्थना हैं
हम अपने बारे में इतना कम
और इतना अधिक जानते हैं कि
प्रेम ही बचता है प्रार्थना की राख में
अकेली एक लहर पूरे समुद्र की जगह बचती है
जब हम भूल जाते हैं जीना
अनंत अपनी मृत्यु में रहते हैं इतने धुँधले
कि हमारी झलक में बार-बार जन्म लेते हैं संसार!
सारे जन्मों में हमीं जन्म लेकर जन्मों की प्रार्थना गाते हैं
हमीं जाते हैं
हमीं रह जाते हैं
आज दो अप्रैल है और मुझे लग रहा है
इसके अलावा आज कुछ नहीं है
आज के दिन जो कुछ भी जन्मा है
उसकी प्रार्थना ही आज का दिन है
धरती घूम रही है
फूलों से लदी
आसमान में बधावे बज रहे हैं।
- पुस्तक : जब ख़ुद नहीं था (पृष्ठ 31)
- रचनाकार : नवीन सागर
- प्रकाशन : कवि प्रकाशन
- संस्करण : 2001
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