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दाँत

daant

अशोक

अन्य

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अशोक

दाँत

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और अधिकअशोक

    कहने रहै माँकेँ

    दुरागमन काल

    हमर मैयाँ

    मुँहमे रखने रहिहेँ पानि

    सासुरमे।

    हमर माँ बात

    कहियो ने बिसरल।

    ककरो, कतबो गंजन पर

    कोंचला पर, टोकला पर

    मान अपमान पर

    उपेक्षा अपेक्षा पर

    नैहरोक खिधांश पर

    मुँहसँ नहि टघरलै पानि

    रखनहि रहल मुँहमे पानि।

    कहलक हमरो

    दुरागमन काल

    हमर माँ

    मुँहमे रखने रहिहेँ पानि

    सासुरमे।

    हमरा बात

    बिसरल नहि होइये।

    पानि रखलासँ

    मुँह तँ दूरि नहि होइये

    मुदा दाँत—

    कमजोर भेल जाइये।

    —हम दंतहीन नहि

    हुअऽ चाहैत छी

    माँ जकाँ।

    ठीक छै जे

    हमर माँ

    दाँतक उपयोग नहि केलक

    अथवा हमर माँक

    दाँतक उपयोग नहि भऽ सकलै।

    मुदा हमहूँ उपयोग

    नहि करब

    अथवा हमरो दाँतक उपयोग

    नहि हैत से

    कोना कहि सकैत छी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चक्रव्यूह पसरैत (पृष्ठ 93)
    • रचनाकार : अशोक
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2023

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