Font by Mehr Nastaliq Web

पगडंडी पर साइकिल

pagDanDi par saikil

आनंद बहादुर

अन्य

अन्य

आनंद बहादुर

पगडंडी पर साइकिल

आनंद बहादुर

और अधिकआनंद बहादुर

    उस व्यक्ति से करना चाहता हूँ बात

    जो धूल भरी पगडंडी पर

    अपनी साइकिल से लटपटाकर

    गिर गया है 

    क्या उसे चलकर उठाऊँ?

    हल्के थपथपाकर धूल-गर्द झाड़ूँ?

    देते हुए दिलासा

    कि यह तो होता ही है भाई

    और इसी बीच

    उसकी साइकिल के एक अनायास मिले 

    स्पर्श से पाऊँ

    उसके जीवन का ठोसपन

    उसकी सुदृढ़ता

    वह सब कुछ जो उस दूर पगडंडी पर 

    उसके साथ बहा चला जा रहा था

    होने के इतने बड़े कुछ नहीं के बावजूद

    कितना कुछ तो था 

    उसकी साइकिल पर लदा-फँदा

    मैं काफ़ी दिनों से

    उस व्यक्ति को देखता रहा हूँ

    जो इतना कुछ लिए-लिए

    अपनी साइकिल से लटपटा कर गिरता है

    उसे उठाने का बनाता हूँ मन

    पर उसे किसी की नहीं है प्रतीक्षा

    खुद उठता है

    अपनी धूल झाड़

    चल देता है

    बहुत धीमे-धीमे साइकिल चलाता हुआ

    कोई धूल भरी खड़खड़िया साइकिल

    मुझे भी मिल जाए

    तो कबाड़ बनी इस पृथ्वी को उस पर लाद

    मैं भी धीमे-धीमे चल दूँ

    किसी अन्य ही पगडंडी पर

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद बहादुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY