जीने के सौ विकल्प

jine ke sau vikalp

कुमार कृष्ण शर्मा

कुमार कृष्ण शर्मा

जीने के सौ विकल्प

कुमार कृष्ण शर्मा

और अधिककुमार कृष्ण शर्मा

    मरने से पहले

    सैनिक ने किसको याद किया होगा—

    ईश्वर को

    देश को

    बटालियन को

    गाँव को

    मकान से दिखने वाले तारों को

    बूढ़ी माँ की झुर्रियों को

    इंतज़ार करती पत्नी की आँखों को

    या अपने बेटे को

    जिसमें शहीद

    अपनी जवानी जीना चाहता था

    मरने से पहले

    सैनिक ने किसको गालियाँ निकाली होंगी—

    अपने आपको

    ग़रीबी और बेबसी को

    गोली बरसाते दुश्मनों को

    राजनीति और राजनेताओं को

    दहेज के लोभी बहन के ससुराल को

    मौत के फ़रिश्तों को

    या उस बेहतर जीवन जीने के सपने को

    जो वह बचपन से देखता आया था

    मरने से पहले से पहले

    सैनिक ने क्या सोचा होगा—

    काश! वह अंतिम बार

    पत्नी को बता पाता

    वह उससे कितना प्यार करता है

    वह छोटा गर्म स्कार्फ़

    इस बार सर्दियों में

    बेटी को पहना आता

    जो उसने कुछ दिन पहले ख़रीदा था

    माँ को बता पाता

    वह रोए

    सरकार से मिलने वाले पैसे

    बेटे की भरपाई कर देंगे

    या उस जिगरी दोस्त के बारे में

    जिससे वह गले लगकर

    जी भर रो सके

    सैनिक ने मरने से पहले

    क्या सपना देखा होगा—

    बाप का सीना

    कमज़ोर पसलियों के बावजूद

    बाहर निकल आया होगा

    मरणोपरांत कोई मैडल

    उसके परिवार को दे दिया जाएगा

    उसकी शहादत को महिमामंडित कर

    क़सीदे पढ़े जाएँगे

    या सीमा के दोनों और तैनात

    सैनिकों की घृणा

    मोहब्बत में बदल जाएगी

    सैनिक आख़िर किसके लिए और क्यों मरा

    शहीद

    खेतों में हल चला कर

    किसी सड़क किनारे पत्थर तोड़

    किसी विधायक, सांसद की जी हजूरी कर

    ज़िंदाबाद मुर्दाबाद कर

    किसी की जेब काट

    लूटकर

    किसी को मार

    दो वक़्त का खाना पैदा कर सकता था

    दुश्मनों से लड़ रहे

    चारों तरफ़ से फँसे

    सैनिक के पास

    शहादत भले ही एक विकल्प था

    अगर वह चाहता

    उसके पास

    जीने के सौ विकल्प थे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुमार कृष्ण शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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