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यातना की रूप गाथा

yatana ki roop gatha

पाब्लो द रोक्खा

पाब्लो द रोक्खा

यातना की रूप गाथा

पाब्लो द रोक्खा

और अधिकपाब्लो द रोक्खा

    ज़िंदगी और ज़िंदगी की परछाइयों के बीच

    संघर्ष करता हुआ

    मेरा हृदय

    लहूलुहान वनपशु की भाँति

    गरजता हुआ

    सभी पवित्र मान्यताओं को चीरता हुआ

    दुनिया और उसकी समस्त वस्तुओं

    पर गुर्राता हुआ

    अपने अंतहीन युद्ध नाट्य में व्यस्त

    भय और भ्रम के बीच

    उलझा हुआ

    केंद्रच्युत!

    अब एक कँटीले कोड़े से

    पुराण-गाथा मेरे विश्वासों की खाल उधेड़ती है

    समाज मुझ पर छा जाता है

    और मेरी चप्पलें महासागरों से मोर्चा लेती हैं

    मेरे संकट में से उक़ाब उड़ानें भरते हैं

    और वह सूर्य जो मैं हूँ जो मेरी सत्ता है

    जिसका विस्फोट होने जा रहा है

    गीली लकड़ी की तरह सिर्फ़ चिटख-चिटख कर रह जाता है

    भौतिक पदार्थ मेरे वक्ष पर चिपक जाते हैं

    वर्तमान उसके महावट की तरह फैलता जाता है

    और यह मधुमक्खी के छत्ते जैसा महानगर

    सत्ता रूपी कबूतरों को उड़ाता है।

    अपने भ्रमात्मक अयथार्थ व्यक्तित्व को

    अपनी मूर्तिपूजकता को

    मिटाने के लिए

    एक तुमुल युद्ध

    अराजकता की चिमनियों

    और काले सीमंट के आकाश का

    पुनर्निर्माण करने के लिए

    और प्रेरणा और अस्तित्व के

    बीच की समस्त दीवारों को ढहा कर नरक की

    खाइयों में फेंकने के लिए

    एक तुमुल युद्ध :

    क़ब्रों पर खड़े होकर

    अराजकता के केंद्र नगर में

    मैं अपनी राख के फूल ढूँढ़ रहा हूँ

    मेरा घोड़ा टूटी तलवारों के बीच मरा पड़ा है

    बिना ढाल के

    बिना ज़िरहबख़्तर के

    ढेर-की-ढेर लाल बंदूक़ें

    नींद की अंदरूनी परतों से

    उबल पड़ने वाली यह घटना

    नावों की तरह पाल फुलाती हुई

    यथार्थ स्थिति का यह परिणाम

    स्पष्ट और भयानक

    पर्वतों की तरह

    हड्डियों की तरह

    कबूतर की तरह

    कंठ-स्वर की तरह

    भँवरों के बीच में स्थित

    अपने रोज़मर्रा को बिजलियों से

    विस्तार देते हुए

    यानी उलझनों में से

    रंध्रों में से अस्तित्व खींचते हुए

    अज्ञात में सत्य बोते हुए

    और पहाड़ों के बीच में

    उलझती नदियाँ अवतरित करते हुए

    यह गतिशील अस्तित्व नहीं है—

    भावनाओं का जीवन दर्शन;

    लपटों और पत्थर के फूलों का

    ओजमयी संचित चिंता को तीन दीवारों के अंदर संग्रहीत करना

    वह सब जो छायामय है—जर्जर है

    उसे बाँध रखना

    मेरी आत्मा और उसकी सामाजिक उपयोगिता

    सामाजिक उपयोगिता जो उसका सत्य है

    उसका शेषनाग है

    उसका सिंहवाहन है

    क्योंकि वह जो गहन है किंतु निश्चित है

    वह ठोस है कल्पित नहीं

    जो ठोस है वही दृढ़

    तीखा है सप्रभावशाली है

    मंदिरों का पत्थर है

    आदमी की पगडंडी

    ज़िंदगी का व्याकरण

    जब वह लकड़ी की मेज़ों पर

    पलता है

    तब उसमें विस्फोट होता है

    और सर्वथा नई सृष्टि का प्रारंभ होता है

    ज़ंजीरों में जकड़े हुए घोड़ों का समन्वय

    फ़ौलाद का फेन आकाश में बरसता हुआ

    संसार के विरुद्ध व्यक्ति के

    विप्लवी ज्वार का फेन

    यह मैं नहीं हूँ

    यह है अहमवादी नायक

    और उसके शृगाल

    जो बुर्जआ ज्ञान, विज्ञान दर्शन को निगल रहे हैं

    तिमिर युगों का युग

    व्यक्तित्व को उलझाते हुए

    शब्दों के दिव्य मकड़े को प्रोत्साहन देते हुए

    उलझनों को बढ़ाते हुए

    ख़ून के प्रेत-दूतों को आमंत्रण देते हुए

    इसी कारण से

    प्रेरणा की समस्त लाल तेज़ी

    समन्वय की अदम्य प्यास

    उदात्त और पवित्र अग्नि बन जाती है

    हाथ

    और सोने का ख़ंजर

    जो प्राणों को अवरोध में खींच लाता है

    जो अवरोध में उलझी अदम्य शक्ति को

    पृथक कर देता है :

    कम्युनिस्ट वीरता

    जिसका नक्षत्र है

    सोवियत वीरता का महासागर

    भौतिकवादी उत्साह

    जिसकी परिणति

    ऐतिहासिक द्वन्द्वात्मक उक़ाबों के पंखों में होती है

    और मुट्टियाँ तन जाती हैं

    पैग़ंबरों की तरह नहीं

    जिसे ईश्वरीय प्रेरणा मिली हो

    जो रूपकों और पहेलियों में बोलता हो

    न,

    इतिहास के अंदर

    इतिहास का निर्माण करता हुआ

    जो कुछ प्रवाहित हो रहा है

    उसे अपने माध्यम से अभिव्यक्त करता हुआ

    मेरे प्रतीकों के विरुद्ध

    लड़ता हुआ, चीख़ता हुआ,

    मार्क्सवादी सत्य का संबल लेकर

    मेरा अस्तित्व

    संपूर्ण समाज के साथ

    ज्वालामुखियों की तरह

    फूटता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 199)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : पाब्लो द रोक्खा
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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