चुप्पी नहि सोहाइये
chuppi nahi sohaiye
बाजू भाइ, कने बाजू
चुप्पी नहि सोहाइये।
जहियासँ अहाँक मुँह जाबल अछि
तहियेसँ मोन हमर टाँगल अछि।
कहने रही अहाँ ओहि साल
हौ, पेट लेल चुप्पी अँगेजलऽ ए
लोक की-की ने करैए
मुदा भाइ
चुप्पीयोक मोल
पेट कहाँ भरैए?
एहिसँ नीक तँ तहिये छल
जहिया गरामे चमौटी नहि छल।
एहिसँ नीक तहिये रहय
जहिया गाममे
पैटघाट पर
सीताराम पार्टी रहय
चौठियाक चाह रहय
उन्मुक्त रही, ठहक्का रहय।
—मुदा ई तमाम अतीत
तँ वर्त्तमानक पूजामे
नैवद्य भऽ गेल।
भाइ, घरसँ भागैमे
भागल जाइमे
कोन 'ग्लैमर' छैक?
ई 'लाली पॉप' जेकरा लेल
अहुछिया कटैत छल सर-समाज
की छियैक
आब अहाँ नीक जकाँ बुझैत छियैक।
यैह 'लाली पॉप' तँ चोरा लेलक
अहाँक स्वर, अहाँक गीत!
ओ गीत जे एखनहुँ घर-बाहर
बाध-बोनमे चकभाउर दइए।
भाइ, शरद अहाँकेँ कत्ते पसिन्न रहय!
वसंतमे कत्ते उमकैत रही अहाँ?
मुदा, आइ वसंत अछि,
मातल मौसम अछि
हम छी, अहाँ छी, सभ अछि
मुदा अहाँ चुप्प छी। किए?
हम बुझै छी
अहाँकेँ आब कोनो—
सप्पत नहि लागत।
मीतक सप्पत, प्रीतक सप्पत
कोनो सप्पत नहि।
तैँ भाइ
अहाँकेँ ओही जरलाहा रोटीक सप्पत।
बाजू, कने बाजू!
चुप्पी नहि सोहाइये
जहियासँ अहाँक मुँह जाबल अछि
तहियेसँ मोन हमर टाँगल अछि।
- पुस्तक : चक्रव्यूह पसरैत (पृष्ठ 28)
- रचनाकार : अशोक
- प्रकाशन : नवारम्भ
- संस्करण : 2023
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