Font by Mehr Nastaliq Web

चुल्हाक आगिसँ लुत्ती उड़य लागल अछि

chulhak agisan lutti uDay lagal achhi

रोमिशा

अन्य

अन्य

रोमिशा

चुल्हाक आगिसँ लुत्ती उड़य लागल अछि

रोमिशा

और अधिकरोमिशा

    पछवाक साँय-साँय कोन दिस लऽ जायत लुत्ती की पता

    कोनो चार जरत कि गोहाली कि

    गामक गाम जरि जायत से नहि पता मुदा

    लुत्ती उड़ल अछि तँ किछु तँ जरत

    कियैक तँ चुल्हिमे झोंकि देने छथि

    एक संग कतेक रास चेड़ा

    हुनका इच्छा छनि चुल्हि पजाड़ि कऽ

    पूर्णाहुति देबाक मिथिलाक शिथिलताक नाम

    जतय बेचै छथि बेटाक माय अप्पन कोखि

    पाग पहिरने द्वार लगैत अछि अनगिन बरियाती

    मासुक बुट्टीपर भुखायल मांसाहारी पशु सन

    दै लेल चाहैत छथि एकटा पूर्णाहुति ओइ मिथिलाक

    जकर मैथिली अपार कष्ट सहैत धरती तर चलि गेली

    इच्छा हुनको होइ छनि करबाक जयगान

    पान मखान मिश्री अरिपन पानि-पीढी

    चानन टिक्का धोती कुरता दोपटाक

    मुदा सोचय लागै छथि जे पाग

    पहिरै पहिराबय बला गणमान्य सब नहि देखैत छथि

    आइ प्रत्येक घरमे सीताकेँ रुद्र वीणा बजबैत

    गोहारि लगबैत छथि कि हे धरती अहाँ हमरो लेल फाटू

    फाटू ओहिसँ पहिने जखन हमरा सीबय पड़त

    अप्पन फाटल करेजाक कोनो बिकायल राम लेल

    हे मैथिल अहाँ भाषा बचबैसँ पहिने बचाउ

    भाषा सिखबैवालीकेँ

    जकर गर्भ पुरुष लेल बलि चढायल जा रहल अछि

    अहाँ बचबू सुखिया मुनिया रितिया सन

    कतेक सरिसोंक फूल जकाँ फुलायल

    दुसधटोलीक चमरटोलीक बेटीकेँ

    जकर देह गहूमक कटाइ होइते पेरा जायत

    मात्र पीयर देह बनि कऽ

    कोसीक धार बहत उन्टा सतलुज दिस

    जतय सब फुलायल फूल मात्र कोखि धरि बनि जायत

    जकर नोर मिथिलापर कानैत समुद्रमे बिला जायत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : फूजल आँखिक स्वप्न (पृष्ठ 107)
    • रचनाकार : रोमिशा
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 2019

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY