चम्पू परिचय प्रवेशिका
champu parichai praweshika
सदा जो सर्वहारा के जियाले गीत गाता है
जबी तो शाहज़ादों से बड़ा मश्कूक नाता है
बहारों में बसे हैं इस सुहानी आह के चूहे
इदारों में घुसे हैं इनके दौलेशाह के चूहे
इसी धरती पे पलते हैं इसे ही खोखला करते
हमेशा इल्किलाबी हैं सदा अपना भला करते
जो इनका क़ौल वो ईमान बाक़ी होशियारी है
धरमनिर्पेच्छ्ता में सिर्फ़ इनकी वस्तवारी है
मरे हिंदू मुसलमाँ कोई भी इनका मुनाफ़ा है
यहाँ मर जाए इंसाँ कोई भी इनका मुनाफ़ा है
मुनाफ़िक़ नौहाख़्वाँ हैं ये जहाँ भी रोते-गाते हैं
ग़रीब आख़िर ग़रीबों के मुख़ालिफ़ होते जाते हैं
चढ़ा पानी पे ईमाँ को रहें बातिल के लश्कर में
करें बर्बाद बच्चों को छिपें क़ातिल के दफ़्तर में
ग़दर चलता रहे हर सिम्त तो अच्छी फ़सल होगी
जबी तो तीसरी दुनियाँ में ग़ैरों की पहल होगी
उमीदें इनकी हरदम ग़ैर की महफ़िल में रहती हैं
सदा बर्बादियाँ भारत की इनके दिल में रहती हैं
सदा नीचा दिखाना देश को हर देश में जा के
विलायत से दिलाना गालियाँ इस देश का खा के
हमीं से ताब ले रुस्वा करें दुनियाँ में भारत को
वज़ीफ़े खा के ये उर्यां करें दुनियाँ में भारत को
ये कमतर दर्ज करते दौर-ए-तारीख़ाँ में भारत को
चले इनकी तो फिर से भेज दें ज़िंदाँ में भारत को
ग़ुलामी ग़ैर की करते शग़ल इनका है 'आज़ादी'
हक़ीक़त में ग़ुलामी ही अमल इनका है 'आज़ादी'
इन्हीं के सुर में सुर पेलो सबू का फ़र्ज़ होता है
जो रुकता है कहीं पे वो मुआ ख़ुदग़र्ज़ होता है।
ऐसा न हुआ और न होगा जहान में
ये चम्पुआ मिलेगा बस हिंदोस्तान में
- रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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