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बस-स्टैंड पर

bus stainD par

अन्य

अन्य

बस-स्टैंड पर लोग बातें कर रहे हैं

और हो रही है बारिश।

हवाएँ उड़ा लाईं हैं कुछ हरे पत्ते

काग़ज़ के टुकड़े

जो ठिठक गए हैं आकर

पोल के पायताने जमे पानी में।

लोग बातें कर रहें हैं

उनकी बातों में हैं तमाम बातें

बस की अब नहीं है उन्हें कोई चिंता

बस आएगी अपने नियत समय पर

बादल गरजेंगे

बारिश होगी

रास्ते में लग जाएगा जाम

पोल के पायताने जमा रहेगा पानी

दूर रेडियो पर बजती रहेगी जानी-पहचानी धुन

बादल गरजते रहेंगे।

लोग बातें करते रहेंगे

बस-स्टैंड एक दृश्य बनकर लटक जाएगा सड़क किनारे।

लोगों की बातों में इन बातों का नहीं होगा कोई ज़िक्र

नहीं होगा कोई ज़िक्र कि कैसे कौन हवाएँ उन्हें यहाँ लाकर ठिठका देती हैं

और फिर यकायक उड़ा भी ले जातीं हैं

वे तो जानते तक नहीं

अपना रुकना, ठहरना, दृश्य बन जाना...

बस के आने तक रहेगा दृश्य

टूट जाएगा फिर

लोग हँसते-मुस्कुराते इधर-उधर चले जाएँगे

अपनी अपनी छतरियाँ खोले

फिर कहीं और ठिठक जाने के लिए।

स्रोत :
  • रचनाकार : आदित्य शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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