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बूढ़े पेड़ का गीत

buDhe peD ka geet

सुरजीत रामपुरी

सुरजीत रामपुरी

बूढ़े पेड़ का गीत

सुरजीत रामपुरी

और अधिकसुरजीत रामपुरी

    चिड़ियाँ तो चिड़ियाँ हैं

    इक दिन उड़ जाएँगी

    नया रूप घोंसलें का यहाँ

    अपना पेड़ है पुराना

    यहाँ तो हर टहनी पर हमने

    बिजड़े के घर लटकाए हैं

    हमारी तन्हाई को इधर

    गले लगाएगा कौन

    पक्षी किसके मीत हुए हैं

    ये कब रुकते, कहाँ टिकते

    मोह की डोरी बाँधे हमने

    अपना आप गँवाना है

    हमने तो पत्ते-पत्ते पर

    आँख के मोती जड़े हुए

    पतझड़ भी आने वाली है

    पत्तों के झड़ जाना है

    उम्र का अंतिम पहर गया

    बर्फ़ गिरी सब पत्तों पर

    साँवली-सी मुस्कान को लेकर

    अब नहीं गरमाना है

    चैत की हवा चलेगी जब

    पत्ती-पत्ती महकाएगी

    कोई भीतर से कह उठा

    मरते दम तक गाना है

    चिड़ियाँ, पथिक, हवाएँ, ख़ुशबू

    छायाएँ तक छोड़ चलीं

    आएगा जब लक्कड़हारा

    हमें भी उठ जाना है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 160)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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