Font by Mehr Nastaliq Web

बुढ़ापा

buDhapa

राजेश राजभर

अन्य

अन्य

राजेश राजभर

बुढ़ापा

राजेश राजभर

और अधिकराजेश राजभर

    तितर-बितर भई डाली-डाली,

    झर गई—सगरो पाती,

    चौथेपन की राह कठिन है—

    कौन जलाए ‘साँझ’ की बाती।

    आँखों में ‘सैलाब’ उमड़ता

    चढ़ता क़दम-क़दम अँधियारा—

    धुँधलाई मद क्षणिक जवानी,

    व्याकुल मन सहर्ष स्वीकारा!

    ठहर-ठहर, दिन पहर की हानि,

    असमंजस नित नई पुरानी

    अपनेपन की—आग बुझाती,

    कौन जलाए साँझ की बाती।

    तन ‘तन्हाई’ में जलता

    सुकून कहाँ, भई ‘ओझल’ छाँव

    ‘आलय’ अंत घड़ी की राह

    आत्म समर्पित—जर्जर पाँव!

    कहाँ मिलूँ, और कौन मिलाए

    मुझसे बिछुड़ा मेरा गाँव—

    जैसे सूरज, चाँद की भाँति

    कौन जलाए साँझ की बाती।

    बेरंग लगे, रंगीन दिशाएँ—

    अवरुद्ध कंठ—क्या गाए गीत,

    आशाओं की आभा खँडित,

    समय बताएँ गहरी प्रीत!

    भूतकाल की अँगड़ाई है—

    परछाई ही परछाई है!

    दुर्बलता की देहरी पर

    बिसारि गए सब—संग संगाति

    कौन जलाए साँझ की बाती।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेश राजभर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY