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बीसवीं सदी का नया प्रलाप

bisvin sadi ka naya pralap

अनुवाद : दिनेश चमोला

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बीसवीं सदी का नया प्रलाप

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और अधिकची: अे:

    ओ! हरी चमकीली चाँदनी!

    कहते हैं वे

    तुम्हारा ही है एकमात्र चमकता प्रकाश

    सुनहरे शीशों से

    गर्मी बाँटते सूर्य के समान

    चाँद! तुम पूरे हो

    आधा कर लेते हो अपने को

    चक्कर लगाते जाते हो

    धरती के चारों ओर

    और

    फिर अँधकार में बदल जाते हो

    चाँद!

    तुम्हारे पास रहता है ख़रगोश

    और एक बूढ़ा आदमी

    कूटता है चावल

    या कि सरिताएँ,

    तीखे किनारे वाली लंबी घाटियाँ

    चटियल ज्वालामुखी

    और ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ

    चाँद!

    अपनी गुरुत्व शक्ति से

    मशीन से नीचे उतर आया

    तुम्हारा धरती से

    यह कहते हुए

    कि मैं एक आदमी हूँ

    सौंदर्य समाप्त हो गया है

    और लंबी रातें बीत गईं

    कोई स्वप्न बचा।

    यह विजय है

    अथवा एक शक्तिभरी क्षति?

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 114)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : ची: अे:
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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