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भूमिपुत्र

bhumiputr

राजेश राजभर

अन्य

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राजेश राजभर

भूमिपुत्र

राजेश राजभर

और अधिकराजेश राजभर

    उठो अभी तक सोए क्यों हो?

    अँधकार में खोए क्यों हो...!

    तुम पर चलता है जग सारा

    अन्नदाता है नाम तुम्हारा।

    न्याय नीति नियम नैतिकता

    संस्कार के सहभागी बन!

    तुमने ही तो सींचा है

    वसुंधरा का, हर एक कण-कण

    नदी नहर जल-थल हरियाली

    चारों ओर तुम्हारी जय हो

    उठो अभी तक सोए क्यों हो...?

    अर्थव्यवस्था के परिचायक

    पहचानों निज रूप तुम्हारा

    तुमसे ही तो बहती है,

    धन, धान्य की निर्मल धारा

    जीवन के संजीव पटल पर

    प्रथम दृष्टया दानी तुम हो

    उठो अभी तक सोए क्यों हो...?

    कागा चलते हँस की चाल—

    असली नकली भेद मिटा दो,

    परिवर्तन की आँधी लेकर,

    उनके चाल चरित्र दिखा दो!

    अपवादों की आग बुझा दो,

    कर्म-धर्म के भाव सरल हो

    उठो अभी तक सोए क्यों हो...?

    निठुर विधर्मी संकुचित टोली

    पग-पग बैठी, जाल बिछाए

    असंख्य भेष, द्वेष की आँधी

    अधिकारों की लूट मचाए,

    भूमिपुत्र, हे हलधर स्वामी

    तुम अपना अधिकार तो ले लो

    उठो अभी तक सोए क्यों हो.?

    अँधकार में खोए क्यों हो...!

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेश राजभर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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