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भविष्यवक्ता

bhawishywakta

अविनाश

अन्य

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अविनाश

भविष्यवक्ता

अविनाश

और अधिकअविनाश

    मंत्रमुग्ध श्रोतागण अपने भविष्य की कल्पना को रेखांकित सच की तरह पढ़ना चाह रहे हैं। बोलने वाले ने हर उस चीज़ को साधारण किया जिसे श्रोता भय की दृष्टि से विचारते थे।

    वह बोला की हर घर में समृद्धि होगी। समृद्धता की रोज़ नई परिभाषाएँ गढ़ने वाला परिवार, ख़ुद को हर बार उस परिभाषा की पहुँच से थोड़ा पीछे पाता, वक्ता की मुख वैल्यू पर अपनी कल्पना को नज़दीक़ी सत्य का ताज दे दिया।

    वह बताता है कि उनकी समृद्धि पे गिद्धों की छाँव उसकी है। उसके तरीक़ों से सदैव ही विस्मित रहने वाला अचानक से उसके तरीक़ों के आततायी सूत्रों का आचमन करने लगा। जिस कल्पना को सच करने का रोड़ा पता चला, उसने रोड़े को हटाने का हर संभव जुगाड़ किया।

    जब वह अंत में ठठाकर कहा कि समृद्धि एक मज़ाक़ है। उन्होंने अगल-बग़ल की बर्बर बंजरता देखी। अपने आँखों की खंगाली हुई तस्वीर पर नाक और देह चिपकाए। ख़ून और पसीना सब घोलकर वह पहचानना चाहते थे कि सब कुछ एक कल्पना था मात्र?

    भविष्यवक्ता ने उनकी कल्पना को सच नहीं किया, उनके सच को कल्पना की तरह गढ़ा। किसी उम्दा गल्प की तरह जिसमें यक़ीन करना ही पड़े।

    वह इस बारीक अंतर को बिना बूझे, मंत्रमुग्ध होकर एक ही नारा लगाने लगे।

    यथार्थ झूठ है। कल्पना यथार्थ है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अविनाश
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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