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बेइंतहा मुहब्बत

beintha muhabbat

अलका सिन्हा

अलका सिन्हा

बेइंतहा मुहब्बत

अलका सिन्हा

और अधिकअलका सिन्हा

    सच है, मैंने किया है तुमसे अटूट प्रेम

    बेइंतहा मुहब्बत

    ले ली है दुनिया भर से लड़ाई

    पर जुनून ही हुआ तो मुहब्बत कैसी

    सच है, मैंने दीवानावार चाहा है तुम्हें।

    हालाँकि, मैं नहीं हुई शामिल कभी

    तुम्हारे नाम पर निकाले जलसे-जुलूसों में

    नहीं लगाए तुम्हारे नाम के नारे

    पर टस से मस नहीं हुई अपने उसूलों से

    मुश्किल कर ली मैंने अपनी ज़िंदगी

    मगर अकेले दिए-सी

    जलती रही मेरे प्यार की लौ

    यकीन करो, ईमानदारी भी ज़रूरी है

    सच्ची मुहब्बत के लिए!

    विश्व बाज़ार में

    एक ग्राहक से अधिक है मेरी हैसियत

    इसलिए कभी देखा नहीं

    चाइना बाज़ार की तरफ़,

    यकीनन कठिन होगा

    होगा महँगा

    पर मुझे भाया स्वदेशी सामान

    स्वदेशी भाव।

    अवसर की तलाश में

    पलायन करने के बदले

    बुलाते रहे मुझे घरेलू उद्योग,

    बेआवाज़ चलती विदेशी मशीनों की

    तेज रफ़्तार से कहीं ज़्यादा

    लुभाता रहा मुझे

    लयबद्ध चलता लकड़ी का चरखा

    और खड्डी की आवाज़।

    स्वाभिमान से भरता रहा

    हाथ से काता खद्दर,

    डायमंड कट वाले काँच के बरतनों से

    ज़्यादा भाते रहे

    भट्टी में पकाए मिट्टी के कुल्हड़!

    पेट्रोल की धौंस को दरकिनार कर

    साइकिल से तय कर लेना

    लंबी दूरियाँ भी होता है

    इजहारे मुहब्बत,

    लिखती हूँ मैं भी

    देसी जूते की ठाठ पर

    स्वावलंबन के गीत।

    और हाँ,

    अपनी भाषा को प्यार करना

    बोलना अपनी मादरे ज़ुबान भी

    भरती है मुझे

    मुहब्बत के अहसास से।

    सुनो, बंदगी से कम नहीं होती है

    सच्ची आशिकी,

    धर्म और मज़हब से ऊपर होती है

    मिट्टी से मुहब्बत,

    मंत्र और अजान से बढ़कर होता है

    देशभक्ति का गान।

    भले ही मैंने सरहद पर जाकर

    बँदूकें नहीं थामीं

    नहीं बरसाए तोप के गोले

    मगर थामे रही

    भीतर की बागडोर

    जैसे घूमते पहिए से

    निकल गई कील की जगह

    फंसा रखी हो अपनी उँगली

    कि लड़खड़ाने पाए मेरा देश रथ।

    ये बात और है

    कि मेरी ज़िंदगी पर कोई कहानी बनी

    हुई मेरी मौत पर कोई चर्चा

    किसी की बातों में

    ज़िक्र तक आया मेरा

    मेरी शहादत पर किसी ने

    कोई गीत गाया

    ही मेरी देह को

    तिरंगा ओढ़ाया।

    पर यक़ीन करो

    देश की मिट्टी में गुमनाम मिल जाना भी

    होता है पाकीज़ा मुहब्बत का निशान,

    सच्ची निष्ठा भी होती है

    वतनपरस्ती

    देश सेवा

    और देश भक्ति।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अलका सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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