Font by Mehr Nastaliq Web

बलूत की पत्ती

balut ki patti

पेत्रुस ब्रोव्का

अन्य

अन्य

पेत्रुस ब्रोव्का

बलूत की पत्ती

पेत्रुस ब्रोव्का

और अधिकपेत्रुस ब्रोव्का

    डरा नहीं सकते मुझको काले-से-काले बादल-दल

    मैं मुक़ाबला कर सकता हूँ

    भीषणतम झंझावातों का

    ज्यों बलूत की पत्ती

    चिपकी रहती है अपनी शाखा से

    झंझाओं की घोर अवज्ञा कर मैं

    जीवन से चिपका हूँ

    शरद्काल की बरसातों में या कि उदासी के आलम में

    इस पर दमक और बढ़ जाती

    दुष्ट हवाएँ जब विदीर्ण करने आती हैं

    तब बलूत की पत्ती झूम-झूम कर गाती

    जब जाड़ों में ठंड कमीनी हो जाती है

    और रात में चलते हिम-झंझा के झोंके

    तब वह चुप से छिप जाती है

    जननी-शाखा को ओढ़े

    लेकिन जब जादू चलता है पुनः वसंती

    सम्मोहित हो

    स्वागत उसका करती है पत्ती बलूत की

    नई कोंपलों के हित अपनी जगह छोड़ देती है

    सहज भाव से गिरकर नीचे भू पर सोती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 154)
    • रचनाकार : पेत्रुस ब्रोव्का
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY