बैलाडीला के लोहे पर मेरे बाप का नाम दर्ज है

bailaDila ke lohe par mere bap ka nam darj hai

पूनम वासम

पूनम वासम

बैलाडीला के लोहे पर मेरे बाप का नाम दर्ज है

पूनम वासम

और अधिकपूनम वासम

    बैल के कंधे का उभरा हुआ हिस्सा जैसी

    आकृति लिए तुम लोहे का नहीं हमारे लिए

    हिम्मत का पहाड़ हो

    जिसकी सबसे ऊँची चोटी 'नंदी राज पर्वत' को पूजते आए हैं हमारे पुरखे!

    यूँ ही नहीं पुकारते तुम्हें बस्तरवासी गर्व से

    'बस्तर का मस्तक' कि

    हमारे बच्चे हाथों में पेंसिल का एक टुकड़ा थामे

    तुम्हारी जड़ों में दबी

    रानी प्रफुल्ल कुमारी देवी की नार खींच कर

    तुम्हें उनकी शहादत के लहू से रँग सकते हैं

    रानी की क़ुर्बानियों के क़िस्से में

    बहुत से रंग अभी बाक़ी हैं!

    तुम हमारे लिए खारे पानी की झील हो

    जिसके किनारे, खड़े होकर हम

    बैलाडीला... बैलाडीला...

    मय आँय बस्तर चो

    आदिवासी पीला जैसा मीठा गीत

    गुनगुना सकते हैं

    बावजूद हमारे गले में नहीं उतर सकती तुम

    जून की भरी दोपहर में

    ज्वार मंडिया पेज की तरह!

    तुम्हारी देह से सारा लहू चूसने के बाद भी

    तुम तनकर खड़ी रहोगी

    तुम्हारे पास हरे सोने की खदानें तैयार खड़ी हैं

    तुम्हारी देह का सारा मांस गिद्धों के नोच लेने के बाद भी

    तुम दान कर सकती हो भूखे, नंगों को अपनी हड्डियों का कैल्शियम!

    तुम्हारी साँसों को जापान के जंगलों की

    हवाओं की आदत नहीं

    नगरनार की ज़रा-सी गर्मी में पिघल

    सकती हो तुम शुद्ध सोने की तरह

    तुम्हें ख़रीद सकने की जुगत में

    रूस की हवाइयाँ निकल गई!

    तुम मूलधन के किसी ब्याज़ की तरह

    इसकी उसकी तिजोरी में भले ही जा गिरो

    लोहे की पटरी पर दौड़ती हुई तुम

    तड़पती हो लौट-लौट आने की हड़बड़ी में

    जबकि तुम जानती हो

    तुम्हारी देह हमारे लिए किसी 'नागमणि' की तरह है

    तुम्हारी मांसल देह से नहीं बल्कि तुम्हारी हड्डियों की जोड़ से तैयार किया है हमने

    अपने हिस्से का खुला आकाश!

    अच्छा तुम्हें याद है

    दीवार पर टँगी हुई तुम्हारी देह से बनी इस तलवार ने

    साफ़ किया हो कभी अपनी नोक पर लग आए ज़ंग को किसी भेड़िए के ताज़ा ख़ून से!

    यह तो सब जानते हैं

    तुम्हारी गर्भ में पीढ़ियों तक लोहे का भ्रूण पलेगा

    पर यह कोई नहीं जानता

    पैदा होने वाले लोहे पर

    अब किसी अजनबी के बाप होने का

    ठप्पा नहीं लगेगा!

    हमारी हथेलियों ने अभिवादन में दोनों हाथ जोड़ना छोड़कर जोहार कहना सीख लिया है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूनम वासम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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