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बड़ी होती लड़कियाँ

baDi hoti laDkiyan

शैरिल शर्मा

शैरिल शर्मा

बड़ी होती लड़कियाँ

शैरिल शर्मा

और अधिकशैरिल शर्मा

    बड़ी होती लड़कियों के साथ-साथ

    बड़ा होता है एक दुख

    सब कुछ छूटते हुए भी

    धीरे-धीरे छूट जाने का दुख।

    उनके भीतर आकार लेता है एक शून्य

    जो हर उस चीज़ से भरता जाता है

    जो एक दिन छूट जाएगी।

    बड़ी होती लड़कियाँ

    सिर्फ़ समय को पार नहीं करतीं

    वे समय को अपने भीतर जीती हैं

    धीमे अनसुने घड़ी के स्वर में।

    वे बचपन को छोड़ती नहीं

    बल्कि उसे अपने भीतर

    गहराई से सँजो लेती हैं

    जैसे धरती

    बीज को अपने भीतर सँभालती है

    एक ऐसे भविष्य के लिए

    जो कभी संभव है

    कभी असंभव।

    कभी-कभी

    वे अपने ही स्वप्नों को

    सावधानी से खोलती हैं,

    जैसे कोई पुरानी चिट्ठी

    जिसके शब्द धुँधले हो सकते हैं,

    पर अर्थ पहले से अधिक उज्ज्वल।

    हर दिन वे कुछ नया सीखती हैं

    पर सबसे ज़्यादा सीखती हैं

    अपने भीतर की चीज़ों को

    छिपाकर रखना।

    उनकी दुनिया

    दो हिस्सों में बँटी होती है

    एक जो वे दिखाती हैं,

    और दूसरा जो वे जीती हैं।

    उनके भीतर

    हर नई समझ

    पुराने भोलेपन को काटकर उगती है

    वे हर क़दम

    सहजता से नहीं बढ़ातीं

    बल्कि उस गहराई से बढ़ाती हैं,

    जहाँ इतिहास और भविष्य

    मिलकर वर्तमान बनाते हैं।

    बड़ी होती लड़कियाँ

    वृक्षों की तरह होती हैं

    अपनी जड़ों को गहराई में बचाए रखतीं

    और शाखाओं को आकाश तक फैलातीं

    हर छाया

    हर फल

    उनकी अपनी कहानी

    चुपचाप कहता है

    वे अपने भीतर एक सन्नाटा पालती हैं

    ऐसा सन्नाटा

    जो किसी नदी के किनारे

    अचानक ठहर जाने पर सुनाई देता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शैरिल शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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