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आज़ाद ख़्वाब

azad khvab

भवानी सिंह

अन्य

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भवानी सिंह

आज़ाद ख़्वाब

भवानी सिंह

और अधिकभवानी सिंह

    संसार के खेलों में

    बड़ा होता एक बच्चा

    मान लेता है कि

    चलना एक क्रिया है

    और अकेले चलना एक विशेषण।

    मगर अनजान ज़रूरी सवालों से,

    कहाँ?

    क्यूँ?

    और कैसे?

    अकेले चलो, मगर कहाँ?

    कहीं पहुँचना है?

    क्यूँ निकलना है ज़रूरी?

    क्या मिलेगा पहुँच के?

    अगर बना हूँ कही पहुँचने के लिए

    तो चलना क्यूँ?

    और अगर चलना ही मंज़िल है

    तो दूसरों से अलग क्यूँ?

    ये सवाल रोकते है क्रिया को।

    मैं ठहरता हूँ

    मुड़ के देखता हूँ

    गहरी सांस लेते हुए

    सवालों को जचता हूँ

    एक-दूसरे के सामने।

    क्या है सबसे ज़रूरी?

    रस्ता जो हो अनजाना,

    या जिसपे पड़े घर अपनों का?

    अहंकारी रस्ता, चले जो बदलने समाज,

    या अनुसरण अपनों का?

    या चलूँ उस राह

    जो धुंधली-सी दिखती है कहीं मेरे ख़्वाबों में?

    मैं देखता हूँ सवालों में छुपे समाज को

    जो बना रहा है पैमाना सही और ग़लत का।

    रस्ता ऐसा जिसपे हो कर्तव्य साथ

    ख़्वाब भले ही छुट भी जाएँ

    पर खाली हो तेरा हाथ।

    ख़्वाब एक भ्रम है

    पर कर्त्तव्य हक़ीक़त।

    चलना ही जीवन है

    और अकेले चलना मजबूरी।

    और दूसरी तरफ़

    विरोधियों की टोली।

    जिन्हे लगता है मानो वे

    बना रहे है नए समाज के लिए धागा

    उधेड़ कर इस समाज को।

    जो चाहे कि चलों तुम अकेले

    पाने तुम्हारे धुँधले ख़्वाब

    भले हो साथ कोई।

    और इसी होड़ में

    वो उस धागे को दे देते है नया स्वरूप

    ‘आज़ाद समाज’ का।

    मगर मैं बैचेन

    पूछता हूँ ख़ुद से

    की ख़्वाब क्या है?

    क्या मेरा ही स्वरूप,

    जो गढ़ा गया है हक़ीक़तों से,

    दे रहा है आकार मेरी धुंधलाहट को?

    क्या होता अगर

    मेरी हक़ीक़तें होती अलग?

    क्या मैं इतनी ही सिद्दत से

    खोया रहता उस ख़्वाब में भी?

    आज जब

    मेरे सच के साथ

    बदल गए मेरे ख़्वाब

    तो ये बैचैनी कैसी?

    क्या नहीं ख़्वाब भी

    जंजीरे इस जीवन कि?

    ये नया समाज

    पुराने धागे को ही

    पिरों रहा है नए आकार में

    और बना रहा है नई जंजीर

    ‘आज़ाद ख़्वाब’

    जिसमे एक व्यक्ति,

    बिना जाने उसके

    कहाँ, क्यूँ और कैसे

    उतर जाता है

    डूबने।

    जिसे ये समाज

    देगा एक तमग़ा

    एक असफल तैराक!

    स्रोत :
    • रचनाकार : भवानी सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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