आसिफ़ा और आदमख़ोर

asifa aur adamakhor

अमित धर्मसिंह

अमित धर्मसिंह

आसिफ़ा और आदमख़ोर

अमित धर्मसिंह

और अधिकअमित धर्मसिंह

    उसने अभी दुनिया को देखना शुरू किया था

    समझना नहीं

    अगर वह दुनिया को ज़रा भी समझती

    तो वह समझ जाती बलात्कारियों की चाल

    उनकी भाषा और पहनावे से

    पहचान जाती उनके धर्म को

    उनकी ओढ़ी हुई विनम्रता के पीछे छिपी

    कट्टरता को पहचान लेती

    उनके बोलते ही।

    लेकिन उसने अभी दुनिया को देखना शुरू किया था

    समझना नहीं

    हाँ!

    माँ का दर्द उसे समझ में आने लगा था थोड़ा-थोड़ा

    वह बँटाने लगी थी माँ के हर काम में हाथ

    उसे जल्दी ही पता चल गया था

    माँ होना

    वह पशुओं की भूख को पहचानने लगी थी

    हालाँकि वह आदमी की भूख के बारे में

    अभी कुछ नहीं जानती थी

    जानती तो कुछ दरिंदों की भूख का शिकार होती

    उसने दुनिया को अभी देखना शुरू किया था

    समझना नहीं

    उसकी आँखों में कुतूहल था

    सपने थे

    उमंग थी

    मासूमियत थी

    और थी नई-नई चीज़ों को जानने की ललक

    वह जानना चाहती थी

    तितलियों के पंखों के रंगों के बारे में

    वह हिरणों के कुलाँचों

    पक्षियों की उड़ानों

    लहलहाती फसलों

    पेड़-पौधों के क़रीब पहुँच रही थी।

    उसे धीरे-धीरे आभास हो रहा था

    कि दुनिया बेहद ख़ूबसूरत है

    ये नदियाँ

    ये पर्वत

    ये जंगल सब कुछ बहुत सुंदर है,

    मगर जंगल के आदमख़ोर भेड़ियों के बारे में

    वह अभी अंजान थी,

    इनके क्रूर क़िस्से सुनने और समझने की

    अभी उसकी उम्र भी कहाँ थी।

    जो माँ ही सुनाती उसे

    आदमख़ोरों के ख़ौफ़नाक क़िस्से।

    उसने अभी दुनिया को देखना ही तो शुरू किया था,

    समझना नहीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अमित धर्मसिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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