खिड़कीपर बैसलि लड़की
कोनो फिल्मी गीत गुनगुना रहल छलि
प्रायः कुमारि होयत, सपनाय सेहो रहल छलि
ककरो परवाहि नहि छलै आ ओकर
वर्तमान मौसममे उत्साह-उत्साह भरल छलै
नदीमे जवानी जीब' लागल छलै
घोघमे पानि लेने विभोर छल धानक पौध
हवामे उम्मीदक रंग पसरऽ लागल छलै
उमस सेहो छलै, नहियोँ छलै
रितु-परिवर्तनक दिन छलै
टहलि रहल छल छोट-छोट मेघ
मौसमक खिलखिलायब, धरतीक लजायब—
सभतरि नीके-नीक लागि रहल छलै
जेना, सपनाक गाममे सभ कुशल-क्षेम रहै
एहन सोहनगर मौसममे
कतहुँ ककरो किछु पता नहि छलै, कि
हमर विरुद्ध जूआ खेलल जा रहल अछि
चहुँओर व्याप्त छल व्यापार
नोचल जा रहल छल शब्दक खाल
संपूर्ण वाक्य लहूलुहान भऽ रहल छल
राजा बाजि रहल छल, देश बचयबाक अछि
राजा बाजि रहल छल, देशमे गंदगी अछि
राजा बाजि रहल छल, देशपर खतरा अछि...
राजा ई बाजि रहल छल
राजा ओ बाजि रहल छल
राजा कतेक किछु बाजि रहल छल,
कि राजा किछु ने बाजि रहल छल!
आ एतहि आबि हम अबूझ होइत रही
राजा जे बाजि रहल छल, से भऽ नहि रहल छल
आ जे भऽ रहल छल, से बाजि नहि रहल छल—
ओतऽ किछु शब्द टा छल—
कहबीमे/जिद्दमे/आग्रहमे...
...आ फेर तँ हम
एक दुःस्वप्नकेँ जीबऽ लागऽ रही जेना,
कि एहि पृथ्वीपर एक देश भेल करैत छल
जकर राजा रोबोट छलै
आ जे रिमोट सँ चलैत छल
मंदिरमे घड़ी-घंट बजैत रहैत छलै
मस्जिदमे ‘लाउड' होइत जाइत छलै 'स्पीकर'
गिरिजाघरमे मोमक दीप पिघलैत छलै
आ आँखि सभमे हँसैत छलै हिंस्रभाव!...
तथापि,
प्रेमक बीज जरल नहि छलै पूर्णतः
भयभीत चिड़ैयक आँखिमे
शेष छलै जीवनक अप्रतिम रूप
नमी बचल छलै इच्छामे
सोच सेहो विक्षिप्त नहि भेल छलै निष्कर्षतः
से कहैत छी खानगी तेँ
कि साँसमे जहरक विरुद्ध जारी छल संघर्ष...
- पुस्तक : शब्दकेँ नहबैत (पृष्ठ 28)
- रचनाकार : बिभूति आनन्द
- प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
- संस्करण : 2019
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