भेटैत रहैये बरोबरि
दुखसँ भरल/सिनेहमे डूबल अहाँक चिठ्ठी
से डाकोपीनो बुढ़बा आब चीन्हि गेलये हमरा
अहाँक प्रतापसँ
हे हमर मोनक मलिकीनी!
कहैत छी पत्रक मार्फत अहाँ, जे
परिवार बड़ कष्टमे अछि/मायक मौगियाही दुख
फेर साढ़े नओसँ उखड़ि गेलये/दीदीक
नुआ आब साफे नाङट भऽ गेल छै/धियापुता
मोनेमोन खसल जा रहल अछि दिनोदिन
आ...आ...हमर...नञि
एतऽ सभ सकुशल अछि/कथूक फिकिर नहि
आनिसँ रहू/आनन्दसँ रहूँ...
किछु ने फुराइये हे हमर सपना!
अहाँ की लिखै छी/लिखै छी, फेर
अपने ओकरा कटै छी
साफ-साफ कहऽमे एना किये हिचकै छी
पत्रक आरम्भमे भेटैत अछि पाँती जे
भोरका कुहेस नीक जकाँ फाटि गेल छै
पुरुबक क्षितिजपर नारिकेरक डाबा भँगा गेल
साफ-साफ देखा रहल छै...
हे हमर अन्ठायल प्राण!
अहाँक कविआयल पाँतीपर
ठीके हँसीक तोड़ उठैत-उठैत रुकि जाइत अछि
आ अंकित होबऽ लगैत अछि भविष्य
जाहिमे ई कविआयल घर ध्वस्त भऽ रहल अछि
एकटा कविमे तँ ई घर बुड़ि रहल अछि
आब ई रोग नहि पसरय
हे हमर काव्यमयी मोन!
आगू, अहाँक जे सभ कहनाम अछि
हमरा तँ सभ भींगल अछि एहि देहमे
(जकरा भोगैत अहाँ अकछा गेलि छी)
ओहिना मोन अछि—
अमीनसाहेबक जरीबक एकबाल
बाबाक हँसि-हँसिकऽ बजैत आ तकर बादे
दू गोटेक बीच ताण्डव
मुखिया आ सरपंचक पंचैती
जेठरैयतक पितड़िया आँखिक चमकब
सुगिया, फूलवती, रासो…सभक खुलिकऽ चहकब
नारा, जुलूस, भाषण-भूषण
कांग्रेस, जनता, सोशलिस्ट आदिक
रक्तबीज जकाँ पसरब
सभ किछु देखल अछि/भोगल अछि।
हे हमर!
आइ गामक चिट्ठी पढ़ैत छी तँ मोन पड़ैये
रातुक मातल निन्नकेँ तोड़ैत
चरमराइत चलि जाइत बैलगाड़ीक झुण्ड
कमासुत टोलपरसँ अबैत
मातल/निन्नमे बोरल
सलहेस/लोरिक/विरहा/फागु/चैती...क स्वरलहरी
झहरैत मेघमे छत्ता तानि बैसल खेत-मालिक
आ बिराड़-खेतमे छप-छप करैत जऽन
कान्हपर पालो टनने बरद, आ अड़पेना करैत हरबाह
मौन पड़ैत अछि—
गुरुजीक छौंकी तरसँ बहराइत
बिटगरहाँ, सबैया, ढ्योढ़ा, हुठ्ठा, पौनाक सुरम्यपाठ
माघक अरामी भोरमे अबैत गण्डेस्सरसँ
धर्मप्राण लोकक मंत्रोच्चारणक कर्णप्रिय धुन
लागल धुनिक आलोकमे
साधु सभक चलैत चीलमपर चीलम
सभ किछु मोन पड़ैत अछि
आ सभ किछु बिसरि रहल छी
हे हमर कविता ओ नव कविता!
गामसँ अबैत खन कहने जे रही
मालगुजारी दिआ
से एम्हरो की कम तंगी अछि
कविता-कथा लिखैत छी
ओहिसँ की होइ-जाइबला छै पेटकेँ
दू-चारि सय टकाक नोकरी कि कोनो नोकरी छियै
कतेक दिनसँ मोन अछि टाँगल जे
एकटा सिनेमा देखी, मुदा
तारपर तार दिन-दिन बढ़ले जाइये
आ से कते-कते दिनधरि
अहाँक टाङल फोटो सेहो बिसरा जाइये
पत्रक आगू, अहाँ लिखैत छी
नबका राजक नबका कानून सेहो सैह अछि
कोटाबलाक वैह दीन-दुनियाँ छै
बनियाँ सभक भाव, अभावकेँ द्विगुण स्वरमे
किकियाबऽ लागल अछि
से ई किये जाइत छी बिसरि
हे पंचमीक फूल लोढ़निहारि हमर नवविवाहिता!
कानून सदिखन सरकारक होइछ
जेहन सरकार औतै, तहिना तकर संग देतै?
अहाँ ई सोचैत होयब, जे गामेटाक ई हाल छै
फूसि, एकदम्म फूसि/रोजे एतऽ राजधानीमे
अभावक विरोधमे आवाज उठैत छै
(ओना ई बात दोसर छै जे सत्ताक जूता तर
बहुतो मसोरि देल जाइत छै)
शहीद-स्मारकक तऽरसँ आत्मा चीत्कार करैत छै
तँ सरस्वतीक प्रांगणमे लाठी चार्ज होइत छै
घायलक हुजुम बहराइत छै
सदनमे सरकारक असफलता पर आक्रोश बजरैत छै
व्यवस्थाक सम्पूर्ण अस्वीकारक रूपमे
पर्ची बम जकाँ बेंचपर धमकैत छै
तँ ठाम-ठाम घर-तलाशी होइत छै, आ
प्रान्त/देशक गाम-नगरमे धारा चौबालिसक तहत
कर्फ्यू-गश्ती जारी होइत छै।
आ
आब तँ व्यवस्थाकेँ
लोके परसँ विश्वास उठल बुझाइत छै
खैर
कहबाक ई अछि, जे
कोनो अपरिचित स्थानपर
पहुँचलाक बादक आपकताक अनुभव/आनन्द
यथार्थबोध करबैछ तखन, जखन
ओहि स्थानक बासी बनि जाइ
तेँ
हे मैथिल ललनाक अल्हड़ता अपनामे
संयोगि रखनिहारि नारि!
हमर बातक गीरह बान्हि लिअ आ गामक भोग करू
ककरा ने इच्छा होइत छै जे बहुक संग रही
'भुखलो रहि लेब एक-दोसराक मूह निहारि’
बला ओ गप्प अहाँक तँ ठीक
मुदा कतेक दिन?
अहाँ कष्टमे छी
से एगो बात कहिये दी
जे अहाँ एहिमे एसगरि नहि छी
देशक ई जेनरेशने भूखल अछि
हमरा लोकनिक लड़ाइ जारी अछि...
- पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 15)
- रचनाकार : बिभूति आनन्द
- प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
- संस्करण : 1984
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