Font by Mehr Nastaliq Web

अपराजिता

aprajita

रोमिशा

अन्य

अन्य

रोमिशा

अपराजिता

रोमिशा

और अधिकरोमिशा

    हमरा नहि स्वीकार आब अहाँक चुप्पी

    एना नुकायल रहब कोनो अन्हार खोहमे

    जेना कि बेटी भऽ पापिनी भऽ गेलौं

    हे अपराजिता!

    अहाँ कियैक नहि प्रेम करय छी अपनासँ?

    कोन डर अहाँक प्राणकेँ एना जकड़ने रहैत अछि

    जे बिकायल पुरुखकेँ बना लै छी अहाँ अप्पन स्वामी?

    अहाँ खोलू अप्पन मोनक सबटा खिड़की

    आँखिमे उतरऽ दियौ सबटा विरोधक अंगोर

    जकर रक्तिम दाहक चिनगीसँ

    जरि जाय मिथिलाक दहेज प्रथा...

    सुनू अपराजिता, कतेक दिन तक

    नियम-उपनियमसँ बन्हायल

    खुटेसल जायब अहाँ

    कोनो कीनल खूँटासँ

    बेचारी बनल

    लाजक आवरण ओढ़ने?

    हे प्रिय, अहाँ काली बनू

    अहाँ दुर्गा बनू

    कियैक तँ मिथिलामे आब

    तांडव मचल अछि

    शुंभ-निशुंभ सन राक्षसक

    अहाँ कोसी, कमला बलानक

    प्रलय स्वर बनि

    डुमा दियौ पुरुखक अहंकारकेँ

    कियैक तँ अहाँ शक्ति छी हे अपराजिता

    सृष्टिक स्वामिनी जकर गर्भक बिना

    निरर्थक अछि पुरुषक वीर्य।

    स्रोत :
    • पुस्तक : फूजल आँखिक स्वप्न (पृष्ठ 19)
    • रचनाकार : रोमिशा
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 2019

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY