Font by Mehr Nastaliq Web

अनुराग लिखैत छी

anurag likhait chhi

ज्योत्स्ना चन्द्रम्

अन्य

अन्य

ज्योत्स्ना चन्द्रम्

अनुराग लिखैत छी

ज्योत्स्ना चन्द्रम्

और अधिकज्योत्स्ना चन्द्रम्

    हम कविता कहाँ लिखैत छी!

    हम तऽ अपन नोर लिखैत छी

    सत्ये,

    मुदा किछुओ थोड़ नहि लिखैत छी

    मुदा तें हमरा

    आँचर, आकि घोघ टा नहि बुझब

    आँगन सेहो नहि बुझब

    हमहूँ वएह छी, जे अहाँ छी

    अहाँ तामस करब—

    हम चुप रह जाएब

    मुदा,

    चुप रहि कऽ अहाँ के बुझाएब

    अहाँ बुझबै, से हम बुझैत छी

    हम कविता कहाँ लिखैत छी!

    बस, अपन भावना कें

    स्त्री पुरुष मे

    बाँटि टा कऽ नहि देखैत छी

    हमर आँखि मे जे दर्पण अछि,

    तकरा समाजक

    अंतिम लोक सँ शीर्ष लोक धरि

    घुमबैत रहैत छी

    तकरे गुनैत गबैत रहैत छी

    हम कविता कहाँ लिखैत छी!

    हम तऽ साकांक्ष शब्दक जुलूस छी

    अपना कें नारा होएबा सँ बचबैत छी

    सूक्ति बुझैत छी अपन मुक्ति कें

    तें,

    अपन एहि आन्दोलन कें

    माटिक संग जोड़बाक

    युक्ति तकैत रहैत छी...

    हम कविता कहाँ लिखैत छी!

    हम तऽ लिखैत छी गाम

    हम तऽ लिखैत छी शहर

    हम सम्पूर्ण पृथ्वी लिखैत छी—

    ओकर आर्द्रता

    और किछु-किछु

    ओकर बहुत-किछु लिखैत छी...

    तें सृष्टिक

    संग-सुखक संरचना के परखैत

    सरिपहुँ, बेसी काल

    आकुल-व्याकुल भेलि रहैत छी

    हम कविता कहाँ लिखैत छी!

    माँक स्नेह

    पिताक आशीष

    पुत्री-पुत्रक आकांक्षा

    पतिक सदिच्छाक संग-संग हम

    अरिपन-पुरहर लिखैत छी

    अहिबात लिखैत छी

    टेमी लिखैत छी

    हम गहूम लिखैत छी

    हम धान लिखैत छी

    हम खलखल हँसीक संग

    अड़हुल लिखैत छी

    अमलतास लिखैत छी...

    हम तऽ गप-सप करैत छी

    फाटल सिनेह लेल

    सूत ताग लऽ कऽ

    उपराग मे, विराग मे

    अनुराग लऽ कऽ

    ठीके हम,

    अगबे जेना तप करैत छी

    मुदा लोक कहैत अछि

    जे, हम कविता लिखैत छी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : समग्र ज्योत्स्ना (पृष्ठ 81)
    • संपादक : विभूति आनन्द
    • रचनाकार : ज्योत्स्ना चन्द्रम्
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2017

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY