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अंतस का अनुवाद

antas ka anuvad

सोनू यशराज

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सोनू यशराज

अंतस का अनुवाद

सोनू यशराज

और अधिकसोनू यशराज

    तीसरी नदी खो गई है

    पर है।

    तीसरे स्वर से भी अनभिज्ञ हम

    पर है उसका अस्तित्व।

    तीसरी आँख भी

    नहीं खुलती हमारी

    पर है विद्यमान।

    तीसरी नदी कहीं एक धारा

    कहीं पूरी सभ्यता का प्रतीक

    कहीं चुप करा दी गई उसकी कलकल

    कहीं गुम हो गई दुनिया के शोर में

    पर है यह तीसरी नदी

    सहज ज्ञान का रूप

    अदृश्य छोर पर प्रकट सरस्वती।

    तीसरा स्वर

    इड़ा-पिंगला के मध्य है

    यह सुषुम्ना है

    खोया-पाया, राग द्वेष से दूर एक स्वर

    अब कहाँ ठहरे कामना और कुँठाओं के बीच!

    पर है यह तीसरा स्वर

    विचार है, बोध है

    सांस पर आवलंब का।

    तीसरी आँख चेतना है हमारी

    अब कहाँ खुलेगी

    हमारे पास समय नहीं ठहराव का

    इस तीसरी के पास जाने का

    पर है यह तीसरी आँख

    यह विज्ञान है जिसे खोजता ,

    अनुभव करता है जीवन!

    यह जीवन एक घट है, कुंभ है

    यह नदी...यह स्वर...यह आँख...

    यह अंतस का अनुवाद

    हमारा महाकुंभ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सोनू यशराज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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