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अम्मी

ammi

अनस ख़ान

अनस ख़ान

अम्मी

अनस ख़ान

और अधिकअनस ख़ान


    तेरह बरस थी कुल अम्मी की उम्र
    जब वह अपने अब्बा का घर छोड़कर
    उस घर आ गई थीं
    जहाँ उनकी शादी हुई थी

    उनके साथ उनके खिलौने आए थे
    (गुड्डा-गुड़ियों वाले रिवायती खिलौने)
    उनके पहनने के रंगीन कपड़े
    कुछ मिट्टी के खाने-पकाने के खिलौना-बर्तन…
    कुछ और भी चीज़ें थीं
    जो अम्मी को अब याद नहीं रहीं

    याद करने को अब बीसियों काम थे
    जो इस घर में तब से उनके प्रतीक्षारत थे
    जब से उनके पति का जन्म हुआ था

    नींद का अभाव वह ख़ुदा के घर से लाई थीं
    ज़िम्मेदारियाँ उनकी नींद तक में चली आती थीं
    उनकी पुकार में किसी सोते हुए इंसान की
    साँसों की लय नहीं बिगड़ती थी
    और वह नींद से हड़बड़ाकर उठ जाती थीं

    उनके पास बसों और रेलगाड़ियों और मेट्रो में
    सतर्क रहने के वृत्तांत ज़रूर कम थे
    पर अब बदले हुए संदर्भों में ही सही
    उनका अपना एक घर था

    वह अपनी जवान होती लड़कियों के प्रति सतर्क थीं
    किस लड़के-लड़की का अफ़ेयर नहीं चलता…
    मैं उन्हें समझाता था
    वह इस वाक्य में ‘अब इस ज़माने में’ जोड़कर
    हामी भर लेती थीं
    आपका नहीं था क्या कभी…
    मेरे पूछने पर
    हँसते-लजाते
    कुछ-कुछ विजित भाव से
    उनका जवाब आता था—
    इतनी कम उम्र में ब्याह हो गया था,
    उससे पहले क्या ही होता…

    मैं भूल गया था कि वह स्त्री थीं
    और उन्हें अपने साथ हुए ग़लत को भी
    अपना रक्षा-कवच बनाना पड़ता था

    उन्होंने अपना जीवन
    एक ऐसे इंसान के साथ लगा दिया था
    जिसे नौकरी में ठीक-ठीक
    कितनी तनख़्वाह मिलती है
    वह कभी यह तक नहीं जान पाई थीं

    धीरे-धीरे अम्मी के लड़के बड़े होते गए
    इतने बड़े कि अब वह अम्मी को ही टोक सकते थे—
    अम्मी को ज़रा देखो कैसे सज-सँवरकर तैयार हैं

    अम्मी ने सजना-सँवरना छोड़ दिया था
    अब लड़के बड़े हो गए हैं क्या सोचेंगे…
    वह अब हर बात में यही सोचती थीं

    मैं अम्मी को देखता था
    और सोचता था
    और उनके दुखों को
    कविता में लाता था

    एक स्त्री और माँ की पारंपरिक भूमिका में
    अपनी माँ को दर्ज करने के अलावा
    मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
    स्रोत :
    • रचनाकार : अनस ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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