Font by Mehr Nastaliq Web

मजूर सँ

अमरनाथ झा ‘अमर’

अन्य

अन्य

और अधिकअमरनाथ झा ‘अमर’

    कहै छै सभ जे

    आइ तोहर दिन छियह

    गाओल जा रहलह अछि

    तोहर विरुदावली

    अहल भोरे सँ

    एक सँ बढ़िके एक

    मुदा सभ फेक

    देखौआ, फूसि

    भीतर सँ किछु,

    बाहर सँ नेक।

    सत्त पूछै तँ

    तोहर कुल जमा पूँजी रहह

    तोहर कर्मठता, ईमानदारी

    कार्यक प्रति समर्पण भाव

    ताही पर चलै छलै ताओ

    देश लगबै छलै दाओ।

    मुदा, मोन बिगारि देलकौ तोहर

    आबि के मनरेगा

    अछिन्नरे पाइ

    कमे मेहनताइ

    बना देलकौ तोरा कामचोर

    तै पर सँ फिरीक अनाज

    बना देलकह कर्मबाँझ

    भेल जा रहलह अकाजक।

    कनी देखहक बाध-बोन

    खेत-खरिहान, गामक गाम

    कटै बिनु दुरि जाइत गहूम

    खसल चास, रोपै बिनु धान

    गिरहत हत बैसल

    किसान फिरीशान

    उपजबे नै करतै, तँ कतेक दिन हेतै

    फिरी रसद पानीक इंतजाम।

    एकटा समय रहै

    तोरा प्रति कहल गेल रहै

    हे! हे! मजूर, हे! हे! मजूर

    छी अहाँ तपस्वी कर्मशूर

    वैभव विलाश सँ परम दूर

    अविराम श्रांति सँ चूर-चूर

    कने छाती पर हाथ राखि सोचहक तँ

    की की बँचओने छह अपना मे

    कने अपन बिंब देखह अयना मे

    कतबा बगय बना लेलह कुदरूप

    बचाबह अपन स्वरूप के

    तखने रहि सकबह अमोल

    आ, तोहर विरुदावली हेतै

    सार्थक, अनमोल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नमहर हो चद्दरि जटबए (पृष्ठ 51)
    • रचनाकार : अमरनाथ झा ‘अमर’
    • प्रकाशन : अनुप्रास प्रकाशन
    • संस्करण : 2021

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY