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पथरैल आँखि; निपात पाँखि

अमरनाथ झा ‘अमर’

अन्य

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अमरनाथ झा ‘अमर’

पथरैल आँखि; निपात पाँखि

अमरनाथ झा ‘अमर’

और अधिकअमरनाथ झा ‘अमर’

    भोरे-भोर छतक मुड़ेर पर

    सोर मचब' लगैछ एकटा कौआ

    पड़िकल छै, रोज-रोज

    कयने छै टेमा

    बैसल, बनौने एक ठेमा

    नित्तह दिन सबेरे

    दिअ' लगै छै डाकनि

    अपन अयबाक सूचना सँ

    क' दै छै दलमलित

    घ'र-आंगन

    भेटि जाइ छै बासि सोहारी

    लोल मे दाबि

    भ' जाइ अछि पड़ौआ।

    दिनुका भोजन काल

    मड़बा मे बनाओल खोंता सँ

    बगड़ा-बगड़ी बहराइ छै

    परसल थारी लग आबि जाइ छै

    निधोख, आश्वस्त

    नै कोनो ड’र-भ’र

    दाबि भात गलफर

    फुर्र भ' जाइ खोता मे

    लेने रान्हल-बाँटल

    आहार अपन चिल्हका ले।

    अखनहुँ अबैए महफा (महोखा)

    पहिने अबै छल जोड़ा मे

    आइ काल्हि एकसरे

    जानि ने सहचरी की भेलै!

    सोनहुला रंगक पाँखिबला पक्षी

    करैए उखन्नन

    हरीतिमाक शत्रु, हड़ाशंख के

    खोजि-खोजि, ढूंढ़ि-ताकि

    क' दै छै उपटान।

    कखनहुँ के देखा जाइए

    ताज पहिरने सुललित पक्षी

    नाम, नोंकगर, चोख लोल सँ

    गाछ मे लागल गराड़ के

    खोधि-खोधि खाइत

    कठखोधी।

    पहिने बेसीकाल अबै छलै

    मएनाक कैक जोड़ी

    आब यदा-कदा, एक्का-दुक्का

    लगैए गुलेलक शिकार

    आ, निष्ठुरक आहार भ' गेलै।

    आबै छलै पहिने, नित रोज

    पड़ुकीक एक जोड़ी, बिना नागा

    करै छलै चराउर

    हमर मायक हाथें छींटल चाउर

    जानि ने की भेलै

    कत्त' बिलाय गेलै

    ककरो उठल हेतै मरकी

    बना लेने हेतै ग्रास

    आब अखन नै देखाइए पड़ुकी।

    घरक आगाँमे, ऊँच गाछक छीप पर

    बनौने छल खोंता, लेने छल बसान

    हेमनि तक बास जकर

    कहबए जे डोकहर

    कहै छै डोके भोजन ओकर

    वंशवृद्धि भेला सँ, बुझेलै असौकर्य

    किंवा, आहारक अनुपलव्धता

    कयने हेतै विवश, पलायन लेल

    भरलक लम्बा उड़ान

    बसा लेने हैत अन्यत्र ठेकान।

    पनपिआइ करैत काल

    हरवाह द्वारा

    ठाढ़ कयल ह'र-बड़दक

    पीठ पर असबार,

    हरवाहक पाछू-पाछू

    शिराउर धयने

    कीड़ा-मकोड़ा बिछैत

    धवल पंखी बकक धर्रोहि

    आब कमल जा रहलैए।

    आब नै देखाइए नीलकंठ

    जे बरोबर दर्शन दैत रहै छल।

    लक्ष्मी जी आबथि ने आबधि

    मुदा, अपन वाहन अफरात पठाबथि

    साँझ होइतहि पहुँचि जाय

    मुँह दुस्सी, शत्रु- बुद्धि।

    कचबचियोक कमी नहिं

    मुदा आब नै देखाइए

    चिल्होरि, बाझ वा जगदम्बा

    जोजन भरिक दृष्टि बला

    स्रोत :
    • पुस्तक : नमहर हो चद्दरि जटबए (पृष्ठ 55)
    • रचनाकार : अमरनाथ झा ‘अमर’
    • प्रकाशन : अनुप्रास प्रकाशन
    • संस्करण : 2021

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