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मेरा मैं

mera main

शशि शेखर

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शशि शेखर

मेरा मैं

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    मेरा होना मुझसे छोड़ा नहीं जाता

    क्योंकि

    'मैं हूँ' यह हमेशा हावी है मुझ पर

    पर बात ख़त्म नहीं होती

    बल्कि होती है शुरुआत यहीं से

    उस यात्रा की

    जिसके हर पड़ाव पर प्रश्न होते हैं

    इन प्रश्नों से संघर्ष

    चलता जाता है,

    यात्रा बढ़ती जाती है,

    समय के रथ पर सवार

    यह मैं

    मैं नहीं, मेरा शरीर है

    मैं नकारता हूँ समय को

    क्योंकि

    समय से मेरी नहीं बनती

    एक अकेला वही है

    जो मुँह चिढ़ाता है मेरे होने को

    मैं हूँ और समय से ऊपर

    तुम्हारी पकड़ इस शरीर तक है

    पर मैं शरीर तो नहीं

    मैं कोई माध्यम नहीं

    कोई पल कोई क्षण नहीं

    मैं निरंतर हूँ

    मैं चेतना हूँ

    मैं रहूँगा सदा-सर्वदा

    चेतन में

    उपचेतन में

    अवचेतन में

    रे समया!

    तू छीन नहीं सकता अर्थवत्ता मेरी

    क्योंकि

    किसी अर्थ की तलाश से मैं बाहर हूँ

    मैं बाहर हूँ—

    किसी की परछाइयों के घेरे से

    किसी के प्रेम की परिधि से

    किसी समाज के प्रति

    (मूर्च्छित) उत्तरदायित्व से

    मैं विद्रोही हूँ

    नहीं मानता तुम्हारे नियम

    तुम्हारी नैतिकता

    तुम्हारे धर्म

    तुम्हारी आस्था

    जो दुनिया मेरी है

    मैं स्वयं उसका निर्माता हूँ

    मेरे विश्वास मेरे हैं

    क्योंकि

    मैंने पहले जाना है

    और

    फिर उसे माना है

    तुम टकराओ मुझसे

    मैं अब तैयार खड़ा हूँ

    इस प्रकृति के विराट्र प्रांगण में

    अपने अहं को सँजोए

    अपने 'मैं' को अपना शस्त्र बनाए

    तुम मारो

    मैं लडूँगा

    तुम लहूलुहान करो

    मैं सहूँगा

    सहना, शरीर की नियति है

    विरोध, मेरी चेतना की जागृति

    मेरी चेतना मेरा सर्वस्व है

    उसकी परिधि में समाहित है

    मेरी अस्मिता

    मेरा अस्तित्व

    मेरी अर्थवत्ता

    मेरा मैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शशि शेखर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अदिति शर्मा द्वारा चयनित

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