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अजनबी होता हुआ शहर

ajnabi hota hua shahr

राजा दुबे

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राजा दुबे

अजनबी होता हुआ शहर

राजा दुबे

और अधिकराजा दुबे

    अजब सन्नाटा है

    कोई पत्ता तक नहीं हिलता है

    यह शहर लगता है

    जैसे कोई मुर्दाघर हो

    कोई तो हो जो उदासी के

    छाँटे ये अगम्य बादल

    इस मनहूस क़िले में गूँजे

    ऐसा भी तो कोई स्वर हो!

    कोई पायल तो ठनके

    कोई चूड़ी तो खनके

    कोई तो हो जो निकले

    सड़कों पे बन-ठन के

    जिसे चूमने का मेरा मन हो

    ऐसा भी तो कोई शोला बदन हो

    कोई तो ऐसी क़लम हो

    जो तलवार की तरह चमके

    कोई तो ऐसा गीत हो

    जो सूरज की तरह दमके

    कोई पहचानी-सी सूरत तो हो

    जिसके दौड़ के गले लग जाऊँ

    गोद में सिर रख के रोऊँ

    जब दुनिया से घबराऊँ

    बचाइए, यह शहर

    मेरी क़ब्र बनता जाता है

    एक दलदल है, चारों तरफ़

    जिसमें मेरा क़द (वजूद)

    धँसता जाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बेपाँव का सफ़र (पृष्ठ 24)
    • रचनाकार : राजा दुबे
    • प्रकाशन : अनामिका प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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