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अगली सदी तक हम

agli sadi tak hum

अभिज्ञात

अन्य

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अभिज्ञात

अगली सदी तक हम

अभिज्ञात

और अधिकअभिज्ञात

    स्पंदन बचा है अभी

    कहीं, किन्हीं, लुके छिपे संबंधों में

    अन्न बचा है

    अनायास भी मिल जाती हैं दावतें

    ॠण है कि

    बादलों को देखा नहीं तैरते जी भर

    बरस चुके कई-कई बार

    क्षमा है कि बेटियाँ

    चुरा लेती हैं बाप की जवानी

    उनकी राजी-ख़ुशी

    जोश है बचा

    कि रीढ़ सूर्य के सात-सात घोड़ों की ऊर्जा से

    खींच रही है गृहस्थी

    कहीं एक कोने में बचे हैं दु:ख

    जो तकियों से पहले लग जाते हैं सिरहाने

    और नींद की अँधेरी घाटियों में

    हाँकते रहते हैं स्वप्नों की रेवड़

    पृथ्वी पर इन सबके चलते

    बची है होने को दुर्घटना

    प्रलय को न्योतते हुए

    नहीं लजाएँगे अगली सदी तक हम।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अभिज्ञात
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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