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अबकी जाड़ेन मा

abki jaDen ma

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

अबकी जाड़ेन मा

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    अबकी जाड़ेन मा भओ हइ बुरो हाल, मगर मनु डोलति है

    अंग-अंग ऐसो भओ हइ बेहाल, मगर मनु डोलति है

    बुढ़वा काँपइँ थर-थर-थर बुढ़िया दाँत हलावइँ

    कुछु आलसी रजाइम पसरे परे-परे पगुरावइँ

    अइसे’म ठन्डो पानी जैसे लागइ काल

    मगर मनु डोलति है, मगर मनु डोलति है

    अबकी जाड़ेन भओ हइ बुरो हाल

    मगर मनु डोलति है, मगर मनु डोलति है

    कुछु तौ सूट बूट मा चमकइँ हैं जुर्राबइ डाटे

    लड़िका ऐंठे-ऐंठे घूमइ पहिने कपड़ा फाटे

    कुछु तौ टोपा मइहाँ बाँधे घूमइ गाल

    मगर मनु डोलति है, मगर मनु डोलति है

    अबकी जाड़ेन भओ हइ बुरो हाल

    कुछु के घर मा बनइँ पकौड़ी कुछु के घर मा पूड़ी

    नीकी लागैं जाड़े मइहाँ जोंधरि’कि रोटी छूढ़ी

    अइसेम बदली हइ मेहेरुअन केरी चाल

    मगर मनु डोलति है, मगर मनु डोलति है

    जाड़ेम खपड़ी मुँहु बाँधे सब दुलहिन जैसे लागइँ

    सुर्रु-सुर्रु मुँहु करिके दोसरेन तेरे बीड़ी मागइँ

    घामु निकरो अब तौ आओ नओ साल

    मगर मनु डोलति है, मगर मनु डोलति है

    अबकी जाड़ेन भओ हइ बुरो हाल

    मगर मनु डोलति है

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 8)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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