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आत्म-विश्लेषण

aatm wishleshan

परवेश

अन्य

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परवेश

आत्म-विश्लेषण

परवेश

और अधिकपरवेश

    पाँवों तले

    जो ज़मीन है

    अपनी नहीं

    अपने हाथों में

    बंदूक़ है

    या छाती है

    अब कोई, गुफ़्तगू भी नहीं

    साँझ में आई दरार

    इठलाते साँप-सी

    लगती है

    ख़ून से रँगे

    हाथों का अँधेरा

    इतना घना-गहरा क्यों है

    प्रतिदिन सपने में

    क्यों आते हैं तड़पते बोट

    अब मेरा मन क्यों घिरने लगा है

    क्यों मन करता है

    कि मेले में जाकर

    रान पर मोरनी बनवाऊँ, टैटू-सी

    अथवा दो घूँट पीकर

    दोस्तों की महफ़िल में

    शोर मचाऊँ

    अब तो

    कंधा भी नहीं समीप

    जिसपर सिर रखकर

    रो सकूँ खुलकर

    मुझसे कैसे गुम हो गया

    कौन मेरे हाथ से

    हल की मूँठ छीनकर

    बंदूक पकड़ा गया

    सिरहाने पड़ी हीर की किताब

    उठाकर ले गया

    कौन...कौन...?...?...?

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 441)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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