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1908 के दिन

1908 ke din

अनुवाद : पीयूष दईया

सी. पी. कवाफ़ी

सी. पी. कवाफ़ी

1908 के दिन

सी. पी. कवाफ़ी

और अधिकसी. पी. कवाफ़ी

    उस साल बेकार था वह, बेरोज़गार,

    तो दाना-पानी वास्ते खेलने पड़े उसे ताश के खेल;

    या उधार लिया रुपया और चुकाया नहीं कभी।

    उसे मिली एक नौकरी, महीने के तीन पाउंड वाली

    एक क़ागज़ पेंसिल की दुकान में,

    लेकिन ठुकरा दिया इसे उसने बिना झिझक।

    यह उसके लायक नहीं थी।

    इतनी कम तनख़्वाह माफ़िक नहीं थी उसके क़द-बुत के,

    आख़िर को तो वह एक पढ़ा-लिखा जवान था, पच्चीस बरसा।

    जीत लेता था वह एक दिन में दो या तीन शीलिंग—कभी-कभी।

    भला और कितना पत्तों के खेल से एक लड़का बना सकता था;

    उसकी हैसियत वाले कहवाघरों में, कामकाजी जगहों पर,

    जितनी भी उस्तादी से खेल लेता वह,

    भले चुन लेता कितने भी मूखों को?

    सवाल उधार लेने का है जहाँ तक तो उसका हाल इससे भी बदतर था।

    बिरले ही मिला था डॉलर तो कभी, अमूमन तो इसका आधा,

    और कभी-कभार तो उतर आता था महज़ एक शीलिंग भर तक।

    हफ़्ते भर के लिए या कभी थोड़ा ज़्यादा

    जब जुगाड़ कर लेता वह उन देर रातों की भयावह

    बैठक से फ़रार होने का,

    शांत करता वह अपने को भिगोते रह कर, सुबह तैरते-तैरते।

    उसके फटीचरी कपड़े तो तौबा-तौबा।

    हमेशा वह वही एक सूट डाले रहता,

    एक दालचीनी-भूरा सूट, बहुत बोदा, बहुत बद-रंग।

    ओ! उन्नीस सौ आठ की गर्मियों के दिन,

    तुम्हारी आँख से लगता है बहुत

    लाड़ से बाहर कर दिया गया है वह सूट दालचीनी-भूरा

    बदरंग और उधड़ा।

    तुम्हारी नज़र ने महफूज़ रखा है उसे

    जैसे वह था तब जब उसने उतारे थे वे अपात्र कपड़े,

    उस पैबंदी चड्डी को, सब फेंक दिया था इधर-उधर,

    और खड़ा था अलिफ़ नंगा, ख़ालिस ख़ूबसूरत, एक चमत्कार—

    बिखरे हुए उसके बाल, पीछे को जाते,

    थोड़े धूपतपे उसके अंग तांबई

    नहाने के दौरान उसकी सुबही बेपर्दगी से और समुंदर किनारे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 96)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : सी. पी. कवाफ़ी
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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