Font by Mehr Nastaliq Web

नींद अँखियन में बसा

neend ankhiyan mein basa

जगन्नाथ

जगन्नाथ

नींद अँखियन में बसा

जगन्नाथ

और अधिकजगन्नाथ

    नींद अँखियन में बसा के बा लोग जागि रहल

    आग अपने से लगा के बा लोग भागि रहल

    भूत कुछ एह तरह से चढ़ि गइल नयापन के

    नया, इन्सानियत के अरथ लोग माँगि रहल

    बात धरती के ना आकास के होता सगरो

    बइठि के सवख से पगुरी बा लोग पागि रहल

    जिये के ढंग गजब मिलि गइल जमाना के

    रोज खूँटी जिन्दगी के लोग टाँगि रहल

    बात जे जे रहल हिया में सब उगिलि दिहलीं

    एही कसूर पर हमरा से लोग लागि रहल

    स्रोत :
    • पुस्तक : लर मोतिन के (पृष्ठ 21)
    • रचनाकार : जगन्नाथ
    • प्रकाशन : पुष्कर प्रकाशन, बक्सर
    • संस्करण : 1977

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY