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सुधियन के दाह जब

sudhiyan ke daah jab

जगन्नाथ

जगन्नाथ

सुधियन के दाह जब

जगन्नाथ

और अधिकजगन्नाथ

    सुधियन के दाह जब कबो सजोर हो गइल

    हियरा के पीर पघिलि-पघिलि लोर हो गइल

    जइसे गइलि नजर कबो सपनन का हाट में

    चुपके से केहू कहल कि भोर हो गइल

    कइसन तोहार नेह के इन्साफ ह, सरकार

    तोहरा से लुटाइल जे उहे चोर हो गइल

    रोवलीं बहुत सुनल ना केहू तनी पुकार

    हँसलीं जे तनी गाँव भर में सोर हो गइल

    दुनिया के एह दुराव के गम ना रहल कबो

    मुँह फेर जे लिहल तूहीं मन थोर हो गइल

    स्रोत :
    • पुस्तक : लर मोतिन के (पृष्ठ 38)
    • रचनाकार : जगन्नाथ
    • प्रकाशन : पुष्कर प्रकाशन, बक्सर
    • संस्करण : 1977

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