अनाथ
बहुत पुराने समय की बात है। उस वर्ष वर्षा बिल्कुल ही नहीं हुई। वर्षा थम जाने पर गाँव के लोगों को जीवन-यापन की भारी चिंता हो गई।
एक दिन मुखियों ने विचार-विमर्श किया और राजा से भेंट कर उसे अपने दुख सुनाने के लिए गाँव से चल पड़े। राजा का महल काफ़ी दूर था। रास्ते में भोजन तैयार करने के लिए उन लोगों ने दाल-चावल रख लिया था। मुखियों के साथ गाँव का एक अनाथ नवयुवक भी चल पड़ा था। अब सब लोग चल पड़े और काफ़ी दूर जाने के बाद भोजन तैयार करने के लिए एक जगह रुक गए। भोजन तैयार किया,खाया और थोड़ी देर विश्राम किया। किंतु उस नवयुवक के पास भोजन-सामग्री नहीं थी,अकाल की-सी स्थिति थी। सारे लोग अस्त-व्यस्त-से थे। चावल कम था इसीलिए किसी ने भी उस नवयुवक से भोजन के लिए नहीं कहा। उसे भूख के साथ-साथ थकान भी लगी थी। वह जंगल के भीतर जाकर एक पेड़ की छाँव में सुस्ता रहा था। उसी समय ख़रगोशों का झुंड उसे दिखलाई पड़ा। नन्हे-नन्हे सुंदर ख़रगोश उसी के आसपास मँडराने लगे थे। वर्षा थम जाने के कारण पानी की भारी कमी हो गई थी। सारे तालाब,कुएँ-बावली आदि सूख चले थे। नन्हे ख़रगोशों को बहुत प्यास लगी थी। वे अपनी माता से पूछ रहे थे,माँ,हमें बहुत प्यास लगी है। पानी कब गिरेगा?
तब उन्हें उनकी माता बताने लगी,कल थोड़ी-थोड़ी और परसों सूप के धार की तरह भारी वर्षा होगी,बच्चों। तुम लोग धीरज रखो। अधिक व्याकुल मत होओ।
मादा ख़रगोश की बातें वह नवयुवक बड़े ही ध्यान से सुन रहा था। वह मुँह धोने के लिए वहाँ से उठ कर पानी की तलाश करने लगा। थोड़ी ही दूरी पर एक बड़ा-सा तालाब था किंतु उस इतने बड़े तालाब में भी पानी दिखलाई नहीं पड़ रहा था। वह आगे बढ़ा तो बीच में बिल्कुल थोड़ा-सा पानी दिखलाई पड़ा। वह अभी मुँह धोने ही वाला था कि उस पानी से एक मछली उछली और कहने लगी,आज तो नहीं,किंतु कल थोड़ी-थोड़ी और परसों तो मूसलाधार बारिश होकर ही रहेगी।
नवयुवक ने मछली की बात सुनी किंतु 'यह मछली भला क्या जानती है!' सोचता हुआ मन-ही-मन हँसा और मुँह-कान धो कर वापस होने लगा।
तभी वहाँ की एक मेंढकी ने भी वैसा ही बताया। तब उस नवयुवक को विश्वास हो गया। उसने उन घटनाओं का ज़िक्र किसी से भी नहीं किया। थोड़ी ही देर में सारे लोग वहाँ से आगे चल पड़े। चलते-चलते वे राजमहल जा पहुँचे। राजा से अपने दुख का बखान किया।
तब राजा ने कहा,फिलहाल जीवन-रक्षा के लिए तो मैं तुम्हें अपने राज-कोष से अन्न दे दूँगा। किंतु हमें भगवान के ऊपर भरोसा करना पड़ेगा। वर्षा तो होगी,किंतु कब? यह निश्चय पूर्वक बता पाना संभव नहीं।
इतने में उस नवयुवक को मौक़ा मिल गया। राजा से कहा,महाप्रभु! वर्षा कब होगी,इस बात को मैं निश्चय पूर्वक बता सकता हूँ। आपका आदेश होने पर मैं बता दूँगा।
उसकी बात सुन कर वहाँ उपस्थित सारे लोग बहुत हँसे। राजा भी हँस पड़ा। तब नवयुवक ने कहा,हुज़ूर! मेरी बात झूठ होने पर मुझे मार डाला जाए। सुन कर सभी को घोर आश्चर्य हुआ। किसी तरह बताने का आदेश होने पर उसने कहा,कल थोड़ी-थोड़ी किंतु परसों मूसलाधार बारिश होगी।
उसकी बात सुन कर राजा बोला,तुम्हारी बात सच हुई तो मैं अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ कर अपना राज्य भी तुम्हें सौंप दूँगा किंतु बात झूठ हुई तो मृत्यु-दंड दिया जाएगा।
नवयुवक ने सुन कर 'हाँ' कहा।
अगले दिन देखिए,बूंदा-बांदी हुई और तीसरे दिन सच में मूसलाधार बारिश! जनता ने भारी सुख का अनुभव किया। नवयुवक की बात सच हुई। तब राजा ने उस नवयुवक से अपनी बेटी का विवाह कर उसे ही अपना राज्य भी सौंप दिया।
नवयुवक के भाग्य में राज्य-भोग लिखा था। उसने राज्य-भोग करते हुए अपना जीवन-यापन किया।
- पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 108)
- संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
- प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
- संस्करण : 2013
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