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अपनी-अपनी दुनिया

apni apni duniya

दो मित्र रास्ते में टकरा गए। दोनों उल्टी दिशाओं में जा रहे थे। एक किसी औरत के पास जा रहा था तो दूसरा धार्मिक कार्यक्रम में जा रहा था जहाँ एक महान संत का प्रवचन और कथावाचन होना था।

संत के कार्यक्रम में जाने वाले ने मित्र से कहा, “छोड़ो उस औरत को, मेरे साथ प्रवचन सुनने चलो! संत की वाणी में सरस्वती बसती है। वे नृत्य करते हैं गाते हैं, ऋषियों और देवताओं की अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाते हैं। चलो, बहुत आनंद आएगा।”

दूसरे ने कहा, “तुम मेरे साथ क्यों नहीं चलते? मैं तुम्हारे लिए भी कामिनी का इंतज़ाम कर दूँगा। निरस धार्मिक बातों में समय गँवाने से क्या फ़ायदा!” दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे। आख़िर हारकर वे अपने-अपने रास्ते पर आगे बढ़ गए।

लेकिन जो मित्र धार्मिक आयोजन में गया उसका वहाँ आज बिलकुल मन नहीं लगा। सारे समय वह सुंदर स्त्री की बाँहों में सुख भोग रहे अपने मित्र के बारे में सोचता रहा और स्वयं को कोसता रहा कि वह संतों के फेर में अपना जीवन नष्ट कर रहा है।

और उधर दूसरा मित्र भी आज औरत की बाँहों में डूब नहीं सका। वह यही सोचता रहा कि उसका मित्र ऋचाएँ और धर्मकथाएँ सुनकर पुण्य कमा रहा है। वह निश्चित ही स्वर्ग जाएगा। और एक वह है जो मूर्ख तुच्छ स्त्री की संगत से जीवन को कलंकित कर रहा है।

इसीलिए कहते हैं कि आदमी दूसरी दुनिया के लिए पहली को नहीं छोड़ सकता, ही वह पहली के लिए दूसरी को छोड़ सकता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 187)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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