लोमड़ी और ढेला
किसी समय लोमड़ी और मिट्टी के ढेले में मित्रता हुई। एक दिन दोनों नहाने के लिए तालाब में गए। तालाब पहुँचने पर लोमड़ी ने ढेले से कहा,जाओ मित्र,पहले तुम स्नान कर लो।
यह सुन कर ढेले ने कहा,नहीं मित्र! पहले तुम स्नान करो।
इस तरह 'पहले आप','पहले आप'के बाद अंततः ढेला लुढ़कता हुआ पानी के भीतर पहुँचा वहाँ पहुँचते ही वह घुल गया घुल कर वह मछली के रूप में परिवर्तित हो गया। यह देख कर लोमड़ी ने मछली को पकड़ लिया और वहाँ से चल पड़ी। रास्ते में एक व्यक्ति हल बना रहा था। लोमड़ी वहाँ पहुँची और उसी व्यक्ति के पास उस मछली को छोड़ कर कहीं चली गई। वह व्यक्ति अपने काम में मगन होने के कारण उस मछली की ओर ध्यान नहीं दे पाया। थोड़ी देर बाद लोमड़ी वापस हुई तो देखा कि मछली वहाँ पर नहीं थी। उसने उस व्यक्ति से पूछा,क्यों भाई, मैंने यहाँ एक मछली रखी थी। आपने देखी क्या?
नहीं तो। उस व्यक्ति ने कहा।
लोमड़ी को उस व्यक्ति की बात पर यकीन नहीं आया। वह उसे ही दोष देने लगी। कहा, यदि तुम मुझे मेरी मछली वापस नहीं करते तो मत करो किंतु उसके बदले लकड़ी दो मुझे।
यह सुन कर उस व्यक्ति ने उसे लकड़ी के कुछ टुकड़े दिए। उन्हें लेकर लोमड़ी वहाँ से चली गई। गाँव के भीतर गई और एक चरवाहन बुढ़िया के घर जा पहुँची। वहाँ बकरियों के ठौर में उसने लकड़ी का गट्ठा रख दिया और स्वयं कहीं चली गई। इतने में बुढ़िया घर से निकली लकड़ी खोजने के लिए। देखा,बकरियों के ठौर में लकड़ी का एक गट्ठा रखा हुआ है। वह ख़ुश होकर उस गड्ढे को घर के भीतर ले गई और जलाया और रोटी पकाई।
कुछ देर में लोमड़ी लौटी और अपनी लकड़ी का गट्ठा वहाँ न पा कर बुढ़िया से इस संबंध में पूछा। पूछने पर बुढ़िया ने कहा कि उसने वह लकड़ी जला कर रोटी बनाई है। तब लोमड़ी ने कहा,ऐसा है तो तुम मुझे लकड़ी दो या फिर रोटी दो।
बुढ़िया बोली,मैंने तो सारी लकड़ियाँ जला डालीं। अब मैं कहाँ से ला कर दूँगी? ऐसा कह उसे रोटियाँ दीं। लोमड़ी ने वे रोटियाँ बकरियों के गले के पास टाँग दीं और स्वयं फिर से कहीं चली गई। इस बीच बकरियों ने सारी रोटियाँ कुतर-कुतर कर खा लीं। थोड़ी देर बाद लोमड़ी वहाँ आई और बुढ़िया से पूछने लगी,मैंने यहाँ रोटियाँ रखी थीं। किसने खाई?
बुढ़िया ने कहा,कौन खाता भला? बकरियों ने खा लिया होगा।
लोमड़ी कहने लगी,ऐसा है तो मुझे रोटी दो या फिर बकरी दो बदले में। ऐसा कहते बहुत परेशान करने पर बुढ़िया ने झुंझला कर लोमड़ी को एक बकरी दे दी। तब लोमड़ी उस बकरी को लेकर चली गई। देखा,एक गाँव में विवाह हो रहा था। उसने उसी विवाह मंडप में उस बकरी को बाँध दिया और स्वयं कहीं चली गई। वहाँ के लोगों ने देखा बकरी को और पता नहीं किसने यह बकरी यहाँ बाँधी है,कहते हुए उसे मार डाला और पका कर खा गए। थोड़ी देर बाद लोमड़ी वहाँ आई और अपनी बकरी तलाशने लगी। देखा,बकरी वहाँ नहीं है। तब वह उस घर के लोगों से पूछने लगी,मैंने यहाँ एक बकरी बाँधी थी,कौन ले गया उसे?
लोगों ने कहा,हमने मार कर खा लिया।
लोमड़ी बोली,खा लिया तो क्या? मुझे मेरी बकरी दो या फिर दुल्हन दो। उसकी बात सुन कर लोग बहुत परेशान हो गए। अंत में हार कर दुल्हन लोमड़ी के हवालेकर दी। लोमड़ी बहुत प्रसन्न हो गई और गीत गाने लगी :
मित्र से मछली पाई,मछली से लकड़ी,
रोटी पाई लकड़ी से,लकड़ी से पाई बकरी। बकरी गई तो क्या हुआ,दुल्हन मैंने पाई॥
- पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 56)
- संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
- प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
- संस्करण : 2013
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