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सारदुल की कहानी

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बहुत दिनों पहले की बात है। किसी गाँव में एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। तब मृतक के संबंधी एवं गाँव के लोगों ने श्मशान में ले जाकर उसका दाह-संस्कार किया और स्नानादि से निवृत्त हो अपने-अपने घर चले गए।

कहते हैं कि वहीं पास में एक बनभकवा था! वह सारे घटनाक्रम को देख रहा था। तीन-चार दिनों बाद वह बनभकवा समाधि के पास गया और उसे खोदने लगा। खोदते-खोदते उसे लाश मिल गई जिसे उसने गड्ढे से बाहर निकाल लिया। वह उस शव को खींच कर पास की नदी के किनारे ले गया। शव को बहुत अच्छे से धोया और खाने ही वाला था कि ऊपर से एक गिद्ध नीचे उतरा।

गिद्ध ने कहा,तुम तो बड़े स्वार्थी हो,जी! मैं सुबह-सवेरे से तुम्हारे लिए इसकी रखवाली करता रहा हूँ,और अब जब खाने की बारी आई तो तुम अकेले ही चट् करने जा रहे हो! यह तो अच्छी बात नहीं है। मुझे भी इसमें हिस्सा देना पड़ेगा,वरना देखना!

उसकी बात सुन कर बनभकवा ने कहा,लगता है,तुम तो बड़े ही ठग कर खाने वाले हो! ज़रा देखो तो। मैंने मुर्ग़े की बाँग के साथ उठ कर भारी मेहनत करके समाधि को खोदा। खोद कर गड्ढे से शव को निकाला और कितना सुंदर धोया है इसे। और ठीक खाने के समय तुम हिस्सा माँगने चले आए हो! तुम्हें तनिक भी लज्जा नहीं है,लगता है।

उसकी बात सुन कर गिद्ध ने कहा,अरे वाह रे खोदने वाले! मैं आकाश में घूम-घूम कर जाने कितनी दूर-दूर तक रखवाली करता रहा कि कहीं कोई जाए! मैं इसके चलते कहीं भी नहीं गया और तुम कहते हो कि तुम मुझे हिस्सा नहीं दोगे! यह तो अच्छी बात नहीं है। ऐसा अधर्म मत करो। ज़रा धर्म से भी डरो, अन्यथा भगवान के पास क्या जवाब दोगे? अरे! तुम नरक में जाओगे।

उसके ऐसा कहने पर बनभकवा ने कहा,अधर्म तो तुम कर रहे हो। काम के समय हीला-हवाला,खाने के समय ढेर निवाला! मैं भला तुम्हें मुफ्त में हिस्सा क्यों दूँ?

तब गिद्ध कहने लगा,अच्छा,ऐसी बात है तो हम दोनों चलें भगवान के पास। भगवान जैसा कहेंगे,हमें वैसा ही मानना पड़ेगा। गिद्ध की बात सुन कर बनभकवा भी राजी हो गया।

दोनों जन भगवान के पास जा पहुँचे। भगवान ने उन दोनों को देखा और पूछने लगे,कैसे बच्चों! कौन-सी विपत्ति पड़ी जो तुम लोग हड़बड़ी में चले रहे हो?

तब दोनों ने बारी-बारी से सारी बातें भगवान को कह सुनाईं। भगवान ने दोनों की बातें सुनी और पूछा,वहाँ पास में और भी कोई था?

बनभकवा ने कहा,हाँ, भगवन्! समाधि-स्थल के पास छींद का एक पेड़ है। उस पर सारदुल पक्षी बैठा था। वही सारे घटनाक्रम को देखता और सुनता रहा था।

तब भगवान ने विचार किया कि इनका सही न्याय नहीं करने पर इनका मुझ पर से विश्वास उठ जाएगा। ये मुझ पर भरोसा नहीं करेंगे। ऐसा विचार कर दोनों से कहा,चलो,शव के पास चलें। वहीं सारदुल चिड़िया से पूछ कर मैं तुम्हारा न्याय कर दूँगा।

तब तीनों जन श्मशान में जा पहुँचे। जाकर देखा, शव को नदी के किनारे जिस स्थिति में छोड़ गए थे,वह उसी स्थिति में जस-का-तस था। वहीं पास में था-सारदुल चो कहनी छींद का वह पेड़। सारदुल पक्षी उसी पेड़ पर अब भी बैठा था। तब सारदुल को देख कर भगवान ने उसे पुकारा। पुकारने पर सारदुल भगवान के पास गया। भगवान ने पूछा,क्यों जी,सारदुल! तुम बनभकवा और गिद्ध के झगड़े के बारे में कुछ जानते हो?

सारदुल ने मन ही मन विचार किया,'सच बात बताने पर गिद्ध को दंड मिलेगा झूठ बोलने पर बनभकवा नाराज़ हो जाएगा। मुफ़्त में 'करे कोई और भरे कोई और'वाली बात हो जाएगी और मैं खामखा बदनाम हो जाऊँगा।' ऐसा विचार कर सारदुल पक्षी ने 'मैं कुछ भी नहीं जानता,महाप्रभु!'कह दिया। सारदुल की बात सुन कर भगवान चुप हो गए। तब गिद्ध मन ही मन बड़ा प्रसन्न हो गया और भगवान से कहने लगा,अच्छा भगवन्! अब तनिक शीघ्र न्याय कीजिये,न! मुझे बहुत ज़ोरों की भूख लगी है। आप न्याय कर दें तो मैं भोजन आरंभ करूँ।

तब भगवान ने कहा,इससे क्या होता है भला! इसकी मृत्यु को अभी तो दस दिन भी नहीं बीते हैं। खा लेना,किंतु पहले मैं इसे प्राण-दान दे कर जीवित कर देता हूँ। उसी से पूछेंगे। कह कर भगवान ने अपनी छड़ी से शव को स्पर्श कर दिया। स्पर्श पाते ही वह मृतक 'हे राम!'कहता उठ बैठा। तब भगवान ने उससे पूछा,हे बालक! तुम्हारी मृत्यु के दिन से लेकर आज तक क्या-क्या घटा,उसे तुम बताओ।

तब भगवान की आज्ञा पा कर उस व्यक्ति ने बताना आरंभ किया : पिछले रविवार की दोपहर बाद मेरी मृत्यु हुई। मेरी मृत्यु होने पर मेरे भाई-बंधु तथा गाँव के लोगों ने मिल कर इसी जगह मेरी अंतिम क्रिया की और स्नानादि से निवृत्त होकर अपने-अपने घर चले गए। परसों मुर्ग़े की बाँग के साथ इसी बनभकवा ने मेरी क़ब्र खोदनी शुरु की। दोपहर होते-होते मुझे गड्ढे से निकाला और खींच कर नदी के किनारे ले गया। नदी के किनारे ले जाकर मुझे अच्छे से धोया। बैठ कर खाने की सोच ही रहा था कि पता नहीं कहाँ से यह गिद्ध वहाँ पहुँच गया। पहुँच कर वह बनभकवा से हिस्सा माँगने लगा। तब भकवा कहने लगा कि वह हिस्सा किसलिए दे और गिद्ध कहने लगा कि उसे हिस्सा तो देना ही पड़ेगा। इसी तरह लड़ते-झगड़ते वे आपके पास गए। उस व्यक्ति ने कहा और चुप हो गया।

तब भगवान ने पूछा,उस समय सारदुल छींद के पेड़ पर था या नहीं?

उस व्यक्ति ने कहा,हाँ भगवन्! सारदुल पक्षी तो इस सारे घटनाक्रम के समय यहीं पर था और सब-कुछ देख-सुन रहा था। इस प्रकरण को सारदुल आरंभ से ही जानता है।

उस व्यक्ति की बात सुन कर भगवान बहुत क्रोधित हुए और गिद्ध को शाप दिया,तूने मुझसे झूठ कहा। इसलिए जा! आज से तुझे मनुष्य का माँस मिले। मात्र साँप आदि का सड़े हुए माँस ही तुम्हारे भाग्य में रहें। इसी तरह सारदुल पक्षी को भी शाप दिया,तूने सच को जानते-सुनते हुए भी छुपाया और झूठ कहा। इसलिए जा! आज से तुझे दिन में दिखलाई पड़े। जिस मुँह से तुम खाते हो,उसी मुँह से तुम मल-त्याग भी करोगे। लोग तुम्हें सारदुल कह कर शुभ पक्षी मानते थे किंतु आज से तुम्हारा नाम गादुर (गेदुर) होगा। ऐसा कह कर भगवान ने दोनों को शाप दिया और बनभकवा को आशीर्वाद दिया,तुम्हारी बताई सारी बातें सच हैं इसलिए तुम जाओ और प्रसन्नता पूर्वक भोजन करो। ऐसा कह भगवान ने उस व्यक्ति को फिर से शव में बदल दिया और अपने लोक को चले गए।

कहते हैं कि उसी शाप के कारण गिद्ध को मनुष्य का माँस नहीं मिलता तथा सारदुल पक्षी का नाम गादुर (गेदुर) हुआ। इसी कारण वह जिस मुँह से खाता है उसी मुँह से मल-त्याग भी करता है। वह इसलिए दिन में देख भी नहीं सकता।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 113)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

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