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चालाक लोमड़ी

chalak lomDi

बस्तर के दक्षिण में एक सघन वन था। उस वन में सुंदर-सुंदर पेड़-पौधे थे। उसी वन में एक लोमड़ी रहती थी। वह चतुर-चालाक तो थी किंतु उसमें इतनी फ़ुर्ती नहीं थी कि वह अच्छा शिकार कर सके। उसी जंगल में एक तेंदुआ रहता था जो शिकार करने में निपुण था। वह लोमड़ी की अपेक्षा कई गुना अधिक फुर्तीला था। वह पलक झपकते अपने शिकार को धर-दबोचता था।

एक दिन लोमड़ी ने सोचा कि क्यों उस तेंदुए से मित्रता कर ली जाए। वह शिकार करेगा तो कुछ कुछ हिस्सा मुझे भी मिल जाएगा। यह सोचकर लोमड़ी तेंदुए के पास पहुँची।

‘तेंदुआ भाई, क्या तुम मुझसे मित्रता करोगे?’ लोमड़ी ने तेंदुए से पूछा।

‘मैं तुमसे मित्रता क्यों करूँ? मैं अकेला ही अच्छा हूँ।’ तेंदुए ने रूखे स्वर में उत्तर दिया।

‘तुम मुझसे मित्रता इसलिए कर सकते हो क्योंकि मैं चतुर हूँ, चालाक हूँ और फुर्तीली हूँ।’ लोमड़ी ने अपनी झूठी प्रशंसा करते हुए कहा।

‘मैं भी चतुर हूँ, चालाक हूँ और फुर्तीला हूँ फिर मैं क्यों तुमसे दोस्ती करूँ?’ तेंदुए ने उपेक्षा से कहा।

‘मैं किसी से डरती नहीं। इसलिए मुझसे दोस्ती करो।’ लोमड़ी बोली।

‘मैं भी किसी से नहीं डरता। मैं क्यों तुमसे दोस्ती करूँ?’ तेंदुआ बोला।

‘मैं बड़े-बड़े शिकार करती हूँ इसलिए मुझसे दोस्ती करो।’ लोमड़ी ने आगे कहा।

‘मैं भी बड़े-बड़े शिकार करता हूँ। मैं क्यों तुमसे दोस्ती करूँ?’ तेंदुआ फिर बोला।

‘ये बढ़िया है। ज़रा सोचो, हम दोनों चतुर, चालाक और फुर्तीले हैं। हम दोनों किसी से नहीं डरते हैं। हम दोनों बड़े-बड़े शिकार करते हैं इसलिए हमें आपस में दोस्ती कर लेनी चाहिए।’

लोमड़ी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा।

तेंदुआ लोमड़ी के वाक्जाल में फँस गया।

‘हाँ, तुम ठीक कहती हो। हमें मित्रता कर लेनी चाहिए।’ तेंदुए ने कहा और लोमड़ी को अपना मित्र बना लिया।

‘तो ठीक है, आओ हम प्रण लें कि आज से हम जहाँ भी शिकार करने जाएँगे, साथ-साथ जाएँगे!’ लोमड़ी ने कहा।

‘हाँ, ठीक है। हम साथ-साथ जाएँगे।’ तेंदुए ने कहा।

उस दिन के बाद से तेंदुआ और लोमड़ी साथ-साथ घूमते और शिकार करते। लेकिन लोमड़ी का काम नहीं बना क्योंकि तेंदुआ अपना शिकार करता और लोमड़ी अपना शिकार करती। इसलिए होता यह कि लोमड़ी को छोटा शिकार मिलता जबकि तेंदुआ बड़े-बड़े शिकार करता और खाता। एक दिन उचित अवसर देखकर लोमड़ी ने तेंदुए से बात करने का निश्चय किया।

‘तेंदुआ भाई, कभी-कभार तुम अपने शिकार में से कुछ हिस्सा मुझे दे दिया करो।’ लोमड़ी ने कहा।

‘क्यों दे दिया करूँ? तुम तो चतुर, चालाक और फुर्तीली हो, स्वयं अपने लिए बड़े शिकार पकड़ लिया करो।’ तेंदुए ने कहा।

‘हाँ, तुम ठीक कहते हो। मैं तो यूँ ही कह रही थी।’ लोमड़ी खिसिया कर बोली।

वह समझ गई कि सीधे-सीधे दाल गलने वाली नहीं है। लोमड़ी ने चालाकी से काम लेने का मन बनाया।

दूसरे दिन जब तेंदुआ और लोमड़ी शिकार करने निकले तो तेंदुए को एक जंगली मुर्गी मिली जबकि लोमड़ी को एक गौरैया मिली। लोमड़ी ने सोचा कि इतनी-सी गौरैया से तो पेट भरने से रहा। किसी तरह तेंदुए से जंगली मुर्गी हड़पनी चाहिए। यह सोचकर उसने गौरैया को इस तरह पत्तों से ढाँक दिया कि उसकी पूँछ भर दिखती रहे।

‘आहा-हा! आज तो मज़ा गया। आज बहुत दिनों बाद इतनी बड़ी चिड़िया मिली।’ लोमड़ी चटखारे लेते हुए बोली।

‘मुझे भी एक बड़ी-सी जंगली मुर्गी मिली है।’ तेंदुए ने कहा।

‘लेकिन वह मेरी चिड़िया के बराबर नहीं हो सकती है। मेरी चिड़िया में बारह घड़ा तेल है और तेरह हाथ माँस है।’ लोमड़ी इतराते हुए बोली। लोमड़ी की बात सुनकर तेंदुए के मुँह में पानी गया। उसने सोचा कि उसकी जंगली मुर्गी तो लोमड़ी की चिड़िया के सामने कुछ भी नहीं है। क्यों मैं लोमड़ी से यह जंगली मुर्गी बदल कर उसकी चिड़िया ले लूँ?

‘लोमड़ी बहन, इतनी बड़ी चिड़िया का तुम क्या करोगी? अच्छा होगा कि तुम मुझसे मेरी जंगली मुर्गी ले लो और मुझे अपनी चिड़िया दे दो।’ तेंदुए ने कहा।

‘मैं क्यों दूँ अपनी चिड़िया?’ लोमड़ी ने मना कर दिया।

‘देखो, मेरा शरीर तुमसे बड़ा है। मुझे तुमसे अधिक खाने की आवश्यकता होती है। कम से कम मित्रता के वास्ते अपनी चिड़िया बदल लो।’ तेंदुए ने फिर प्रार्थना की।

‘ठीक है। जब तुम मित्रता का वास्ता दे रहे हो तो मैं बदल लेती हूँ अपनी चिड़िया। जाओ ले लो, वहाँ पत्तों के नीचे मैंने छिपाकर रखी है।’ लोमड़ी ने कहा।

तेंदुए ने अपनी जंगली मुर्गी लोमड़ी को दे दी और स्वयं लोमड़ी की चिड़िया लेने पत्तों के पास गया। इधर लोमड़ी ने झपट्टा मारकर जंगली मुर्गी उठाई और चंद पलों में पूरी मुर्गी चट कर गई। उधर तेंदुए ने पत्ते हटा कर देखा तो उसका माथा भिन्ना गया। वहाँ छोटी-सी गौरैया थी। तेंदुआ समझ गया कि लोमड़ी ने उसे मूर्ख बनाया है।

वह गर्जता हुआ लोमड़ी की ओर बढ़ा।

‘तुमने मेरे साथ धोखा किया है, अब मैं तुम्हें खाकर अपनी भूख मिटाऊँगा।’ तेंदुए ने कहा। लोमड़ी ने देखा कि तेंदुआ सचमुच उसे मार डालेगा तो वह वहाँ से भाग खड़ी हुई।

इसके बाद तेंदुआ और लोमड़ी फिर एक बार अलग-अलग शिकार करने लगे। तेंदुआ सोचता रहता कि यदि किसी दिन लोमड़ी उसके चंगुल में फँस जाए तो वह लोमड़ी को मज़ा चखाए। मगर लोमड़ी उससे दूर ही रहती। एक दिन लोमड़ी और तेंदुआ टकरा ही गए। लोमड़ी समझ गई कि आज बचना कठिन है लेकिन उसने चतुराई से काम लिया। लोमड़ी ने एक बड़ा-सा गड्ढा खोदा और सियाड़ी के पत्तों से एक लबादा बनाने लगी। तेंदुए ने लोमड़ी का यह काम देखा तो वह चकित रह गया।

‘यह तुम क्या कर रही हो?’ उसने लोमड़ी से पूछा।

‘मुझे पता चला है कि थोड़ी देर में ज़ोर की आँधी चलने वाली है और पानी बरसने वाला है। मैं इस गड्ढे में बैठकर इस लबादे को ओढ़ लूँगी तो आँधी-पानी से बच जाऊँगी।’ लोमड़ी ने कहा।

‘मुझसे तो गड्ढा खोदते और लबादा बनाते नहीं बनता है। तुम मेरे लिए भी एक बना दो। यदि तुम ऐसा करोगी तो मैं तुम्हें चिड़िया वाले मामले में क्षमा कर दूँगा और हम फिर मित्र बन जाएँगे।’ तेंदुए ने कहा।

‘ठीक है। ऐसा करो कि तुम मेरे गड्ढे में बैठ जाओ। मैं तुम्हें अपना लबादा ओढ़ा देती हूँ। फिर मैं अपने लिए दूसरा गड्ढा खोद कर दूसरा लबादा बना लूँगी।’ लोमड़ी ने उदारता दिखाते हुए कहा।

‘तुम कितनी अच्छी हो!’ तेंदुआ लोमड़ी की प्रशंसा करता हुआ गड्ढे में जा बैठा। लोमड़ी ने सियाड़ी के सूखे पत्तों का लबादा उसे ओढ़ा दिया और उस लबादे में आग लगा दी।

देखते ही देखते तेंदुआ लबादे सहित जल कर मर गया। लोमड़ी की चालाकी एक बार फिर काम कर गई और उसने सदा के लिए तेंदुए से छुटकारा पा लिया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 195)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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