Font by Mehr Nastaliq Web

मैथिली लोकगीत : आजु मोहन के आँगन सखि हे

maithilii lokagiit : aaju mohan ke aa.ngan sakhi he

अन्य

अन्य

रोचक तथ्य

संदर्भ—विरहाधिक्य।

आजु मोहन के आँगन सखि हे,

बड़ि बड़ि बूँद गहागहि बरिसै,

धरती बूँद सुहावन।।1।।

जेहो मुनरी छल आँगुरि कसि-कसि,

से हो भेल हाथ कंगन।।2।।

हम सों प्रीति तेजल मन मोहन,

कुबजा जीव कै बैरन।।3।।

हे सखी! आज मोहन के आँगन में बड़ी-बड़ी बूँदे मूसलाधार बरस रही हैं। धरती पर पड़ी हुई ये बूँदें बड़ी अच्छी लगती हैं।।1।।

मैं अपने स्वामी के विरह में ऐसी दुबली हो गई हूँ कि हे सखी! जो अँगूठी मेरी अँगुली में बहुत कसी होती थी, वह अब मेरे हाथ का कंगन हो गई है।।2।।

हे सखी! मनमोहन ने हमसे लगी प्रीति त्याग दी। अरे, कुब्जा तो मेरी जान की बैरिन है।।3।।

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY