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मैथिली लोकगीत : बाईं आँख मोरा फरके हे ननदी

maithilii lokagiit : baa.ii.n aa.nkh mora pharke he nandii

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रोचक तथ्य

संदर्भ—भाभी का ननद से शकुन-कथन।

बाईं आँख मोरा फरके हे ननदी,

पिया आजु अयताह।।1।।

कतनो सँवारो माथे बेनी,

बार-बार सखि खसके हे ननदी,

पिया आजु अयताह।।2।।

खुलि खुलि जाय बंद अँगिया के,

सिर सारी सरके हे ननदी,

पिया आजु अयताह।।3।।

एक भाभी अपनी ननद से कहती है—हे ननद! मेरी बाईं आँख फड़क रही है, इससे लगता है कि आज मेरे प्रिय आएँगे।।1।।

हे ननद! मैं कितना ही सिर की वेणी (चोटी) सँवारती हूँ, कि वह बार-बार खिसक जाती है। आज मेरे प्रिय आएँगे।।2।।

हे ननद! आज मेरी अँगिया (चोली) के बंद खुल-खुल जाते हैं। आज मेरे प्रिय आएँगे।।3।।

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