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मगही लोकगीत : फागुन महिनमाँ, आयल सुदिनमा

maghi lokgit ha phagun mahinman, aayal sudinma

अन्य

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रोचक तथ्य

संदर्भ—एक वधू का अन्य से आत्माभिव्यक्ति।

फागुन महिनमाँ, आयल सुदिनमा,

देवरवा भिंगावइ चुनरिया।।1।।

पटना सहरमा से आवइ रँगरेजवा,

रँगवा डुबाबइ जोबनमा।।2।।

टिकबा गढ़ावे सैया, झुमका गढ़ावे,

देवरा गढ़ावइ बेसरिया।।3।।

कँगनमा गढ़ावे पिया, पहुँची गढ़ावे,

देवरा गढ़ावइ करधनियाँ।।4।।

फागुन के महीने में सुदिन आया, देवर मेरी चूनर भिगोने लगा।।1।।

पटना शहर से रँगरेज आता है, वह रंग से यौवन को रस-सिक्त कर देता है।।2।।

मेरे स्वामी टीका और झुमका गढ़ाते हैं एवं देवर बेसर गढ़ाता है।।3।।

मेरे प्रियतम कँगना-पहुँची गढ़ाते और देवर करधन गढ़ाता है।।4।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 77)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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