अवधी लोकगीत : निहुरे-निहुरे परसैं जनक जी
awadhi lokgit ha nihure nihure parasain janak ji
रोचक तथ्य
संदर्भ—राम विवाह में ब्याहाभात के समय गारी।
निहुरे-निहुरे परसैं जनक जी,
धोतिया मइले होइ जाइ कि हाँ जी।
धोतिया तौ हमरी धोबिया के जइहैं;
अइसे सजन कहाँ पाई कि हाँ जी।।1।।
बरा, पनउछे अउर सुहारी,
खरिकन की अधिकारी कि हाँ जी।
अमवा, भटवा अउर रसाजै,
फुलकन की अधिकारी कि हाँ जी।।2।।
जेंवन बइठे राम-लछिमन,
देहिं सखी सब गारी कि हाँ जी।
ई गारिन कै माख न मानेउ,
गारी अधिक पिरयारी कि हाँ जी।।3।।
झुककर जनक जी भोजन परोस रहे हैं, उनकी धोती मैली हो गई। जनक ने कहा—मेरी धोती तो धुलने के लिए धोबी के घर चली जाएगी, किंतु ऐसे सज्जन बराती कहाँ मिलेंगे?।।1।।
बड़ा, पनौछे, सुहारी (पतली बड़ी पूड़ी) और खरिकों की अधिकता है। अमवा, भटवा, रसाजें और फुलकों का भी आधिक्य है।।2।।
राम और लक्ष्मण जब जींमने बैठे—तो सब सखियाँ गारी देने लगीं। साथ
ही उनसे यह भी कहा कि इन गालियों का बुरा मत मानना, क्योंकि ये गालियाँ अधिक प्यारी हैं।।3।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 159)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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