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समाचार पत्र या अख़बार किसे कहते हैं

samachar patr ya akhbar kise kahte hain

बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

अन्य

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बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

समाचार पत्र या अख़बार किसे कहते हैं

बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

और अधिकबदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

    समाचार पत्र को जिसे प्राय: अन्य ऐसे मनुष्य कि जो भलीभाँति इसके स्वाद से वंचित हैं, केवल यही समझ लिया है, कि कलकत्ते में एक लड़की हुई जिसके एक सींग, दो नाक, तीन हाथ, चार पैर और पाँच आँखें हैं। ऐसी-ऐसी बेसिर-पैर की ख़बरें और समाचार पंसारियों की पुड़ियाँ बाँधने के लिए छपे काग़ज़ की पोटली या पुलिंदा को समाचार पत्र, न्यूज़ पेपर और अख़बार कहते हैं। परंतु वस्तुत: जब विचार कर विचार जनों के विचार के अनुसार विचारो तो यह आजकल के काल का कल्पद्रुम है, और सभी अच्छी और उत्तम देशोन्नति, विद्या, बुद्धि, सभ्यता के प्रचार का उपाय, और देश जातियों में एकता के उत्पन्न करने को और फूट के फल के सेवन से उत्पन्न रोगमात्र की एकमात्र औषधि और राजा और प्रजा के बीच की सत्य इच्छा और दुख-सुख तथा प्रसन्नता और अप्रसन्नता प्रगट करने का एक उत्तम संबंध है; जो दीन अवस्था में पड़े एक देश के भाइयों की दशा को जता दूसरे देश-बांधवों से उनका उपकार कराने वाला धर्म, कार्य, एक छोटी सी बात को भी दूर-दूर के बड़े-बड़े मनुष्यों पर विदित करने में समर्थ दूत यही है।

    अमेरिका वालों ने आज कौन सी कल की नई रचना की और योरोप ने कल कौन सी नई उन्नति की है, लंदन और फ़्रांस में क्या रौनक है, अयोध्या और इंद्रप्रस्थ की क्या उजाड़ सी सूरत है, अँग्रेज़ कैसे विद्वान, ज्ञानमान, वीर और क्या साहसी हैं, हिंदू कैसे मूर्ख, निर्बुद्धि, कायर और आलसी हो गए हैं, हम लोगों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए, मूँछ पर ताव देना चाहिए; चोली, कुर्ती, ओढ़नी, ओढ़ पर्देनशीन होना चाहिए निर्लज्ज हो कोट, पतलून, चुर्ट धारण कर व्यर्थ मिथ्या अँग्रेज़ बन मिस्टर गड्डामियर कहलाना चाहिए; इन बातों को एक जिह्वा से कह करोड़ कानों में पहुँचा देना यह इसी का काम है! यह वह सैरवीन है जो घर बैठे सारे संसार का सैर कराती है, और यह वह नाट्यशाला है जो देश के प्रत्येक दशा का दृश्य दिखा योग्या-योग्य कार्य और कर्तव्य कथा के प्रबंध का तमाशा दिखाता है, फिर क्या धर्म क्या कर्म क्या विद्या और क्या नीति, शिल्प, कृषि, वाणिज्य, व्यापार, आदि सभी शिक्षा का श्रेष्ठ शिक्षक, कभी वह धर्मशास्त्री बन धर्म का मार्ग दिखाता, और मौलवी या पादरी हो दाढ़ी हिला-हिला कर वाज़ सुनाता; कभी नाना विद्वानों के कथन से अपनी योग्यता प्रगटाता, कारीगरों को दूर-दूर की अनोखी और विचित्र कारिगरियाँ जिन्हें वे नहीं जानते जनाता, कृषिकारों को कृषि कर्म, व्यापारियों को संसार भर के सौदे सुलफ़ के भाव और पड़ता तथा वाणिज्य की विधि बतलाता, विद्यार्थियों को विद्या, वकील मुख्तारों के लिए नियम और नीति के नवीन आशयों को प्रगट करता, राजाओं को राजनीति शिक्षा दान छोड़ गवर्नमेंट की इच्छा का प्रकाश, और गवर्नमेंट से प्रजा की दुर्दशा, अप्रसन्नता प्रगट करता है; हास्य प्रिय जनों को हास्य, रसिकों को रस, कवियों को काव्य, सभ्यों को सभ्यता के लेख, कहाँ तक कहें कि समस्त मनुष्यों को उनके इच्छा के अनुसार रूप भर प्रसन्न ही करता है, सदा सब के उपकार के अर्थ शोच निमग्न होकर हित वचन सोच विचार कर कहा जाता है और अपने ऊपर आपत्ति सहकर भी उचित धर्म का परित्याग नहीं करता। जिस बात को कोई भी नहीं कहता उसे कह ही डालता और किसी के ग्राम संदेश और इच्छा को संसार से भी कह कर उसके नाम को गुप्त रखते हैं, कहाँ तक कहें ये सदा सबको नई बात सुनाते, सिखाते और जताते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रेमघन सर्वस्व द्वितीय भाग (पृष्ठ 1)
    • संपादक : प्रभाकरेश्वर प्रसाद उपाध्याय, दिनेश नारायण उपाध्याय
    • रचनाकार : बदरीनारायण उपाध्याय
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मलेन
    • संस्करण : 2007

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