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यह बिनसतु नगु राखि कै

ye binasatu nagu rakhi kai

बिहारी

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यह बिनसतु नगु राखि कै

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    यह बिनसतु नगु राखि कै, जगत बड़ौ जसु लेहु।

    जरी विषम जुर जाइयैं, आइ सुदरसनु देहु॥

    नायिका की सखी नायक से कहती है आप इस विनष्ट होते हुए स्त्री-रत्न की रक्षा करते हुए संसार में अत्यंत यश प्राप्त कीजिए। विषम ज्वर अर्थात् विरह से जली जाती हुई इस नायिका को स्वतः आकर सुदर्शन रूपी चूर्ण दीजिए अर्थात् शुभदर्शन देकर मरने से बचा लीजिए। विषम ज्वर में सुदर्शनचूर्ण दिया जाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 241)
    • संपादक : हरिचरण शर्मा
    • रचनाकार : बिहारी
    • प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
    • संस्करण : 2007

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