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सनि-कज्जल चख-झख-लगन

sani kajjal chakh jhakh lagan

बिहारी

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सनि-कज्जल चख-झख-लगन

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    सनि-कज्जल चख-झख-लगन उपज्यौ सुदिन सनेहु।

    क्यौं नृपति ह्वै भोगवै लहि सुदेसु सबु देहु॥

    सखी नायिका से कह रही है कि काजल रूपी शनिग्रह के नेत्र रूपी मीन राशि में स्थित होने से शुभ मुहुर्त में जो स्नेह रूपी शिशु उत्पन्न हुआ है, वह राजा होकर संपूर्ण शरीर रूपी सुदंर प्रदेश को क्यों नहीं भोगेगा? कहने का तात्पर्य यह है कि वह अवश्य भोगेगा। तुम्हारे स्नेह ने उसके सर्वांगों पर अधिकार जमा लिया है। इस दोहे में सखी अपनी चाक्-चातुरी द्वारा नायिका के हृदय में नायक के प्रति प्रेम उत्पन्न करने का प्रयास करती है। यह दोहा बिहारी के ज्योतिष ज्ञान का प्रतीक है। कहा जाता है कि शनि ग्रह जब मीन राशि में हो उस समय जिस शिशु का जन्म होता है वह शिशु ज्योतिष के अनुसार कीर्तिमान राजा होता है। सखी ने यही कहा है कि हे नायिका, तुम्हारे नेत्र मछली को तरह हैं। (मीन राशि) उनमें लगा हुआ काजल शनि ग्रह जैसा है। ऐसे नेत्रों से जब तुमने नायक की ओर देखा तो उसके हृदय में स्नेह रूपी शिशु उत्पन्न हो गया। ऐसे मुहूर्त में उत्पन्न शिशु प्रसिद्ध राजा होता है, अतः तुम्हारा स्नेह भी प्रसिद्ध और स्थाई होगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 166)
    • रचनाकार : डॉ. हरिचरण शर्मा
    • प्रकाशन : श्याम प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

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