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मूल गहे ते काम है

mool gahe te kaam hai

कबीर

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मूल गहे ते काम है

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    मूल गहे ते काम है, मैं मत भरम भुलाव।

    मन सायर मनसा लहरि, बहै कतहुँ मत जाव॥

    निजस्वरूप का बोध एवं स्थिति ग्रहण करने से ही कल्याण है। हे मानव! तू नाना वाणियों एवं मान्यताओं के भ्रम में पड़कर अपने स्वरूप को मत भूल। मन समुद्र है और उसकी इच्छाएं तरंगें हैं, उनमें बहकर कहीं मत जा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीजक: पारख प्रबोधिनी व्याख्या (पृष्ठ 489)
    • संपादक : अभिलाष दास
    • रचनाकार : कबीर
    • प्रकाशन : कबीर पारख संस्थान
    • संस्करण : 1969
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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