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कुंज-भवनु तजि भवन

kunj bhawanu taji bhawan

बिहारी

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कुंज-भवनु तजि भवन

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    कुंज-भवनु तजि भवन कौं, चलियै नंदकिसोर।

    फूलति कली गुलाब की, चटकाहट चहुँ ओर॥

    नायिका रात भर प्रेमी के साथ रही है। कुंजभवन में वह रति-क्रीड़ा में निमग्न रही, अब प्रात:काल होने लगा है, फिर भी नायक तो उसे छोड़ रहा है और स्वयं ही वहाँ से जाने का नाम ले रहा है। ऐसी स्थिति में नायिका कलियों के चटकने के बहाने से नायक को प्रात:काल होने का संकेत दे रही है। वह कह रही है कि हे नंदकिशोर, अब कुंज-भवन को छोड़कर घर की ओर चलना चाहिए। कारण यह है कि गुलाब की कलियाँ फूल-फूलकर चटक-चटककर प्रात:काल होने की सूचना दे रही हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 220)
    • संपादक : हरिचरण शर्मा
    • रचनाकार : बिहारी
    • प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
    • संस्करण : 2007

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